रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने देश में तेज़ी से बढ़े बैड लोन यानी एनपीए के लिए केंद्र की मोदी सरकार को ज़िम्मेदार बताया है। उन्होंने कहा कि सरकार चाहती थी कि डिफॉल्टर्स के प्रति नरम रुख अख्तियार किया जाए।

विरल आचार्य ने ये दावा अपनी नई किताब में किया है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार चाहती थी कि रिजर्व बैंक लोन ना चुका पाने वालों के प्रति नरम रुख अख्तियार करे। इतना ही नहीं सरकार चाहती थी कि बैंकों की तरफ से कर्ज देने के नियमों में भी ढील दी जाए।

अपनी किताब में विरल आचार्य ने आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे को लेकर भी बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार आरआरबीआई की स्वायत्तता पर अंकुश लगाना चाहती थी, इसी वजह से उर्जित पटेल ने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

आचार्य ने किताब में सरकार की तरफ से अधिक मॉनिटरी और क्रेडिट स्टिमुलस (आर्थिक मदद) को लेकर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा है कि इन स्टिमुलस से भारत के फाइनेंशियल सेक्टर की स्थिरता खत्म हो गई। उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में स्थितियां काफ़ी मुश्किल हुई हैं।

बता दें कि उर्जित पटेल को आरबीआई का गवर्नर बनाए जाने के बाद दिसंबर 2016 में विरल आचार्य को बैंक में डिप्टी गवर्नर के पद पर नियुक्त किया गया था। आचार्य ने आरबीआई में अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा होने से 6 महीने पहले ही जुलाई 2019 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

विरल के इस्तीफे की वजह उस वक़्त निजी कारणों को बताया गया था। लेकिन केंद्र सरकार से उनके टकराव की बात किसी से नहीं छुपी थी। लोगों का तब भी ये मानना था की आचार्य ने इस्तीफा सरकार से टकराव के चलते दिया है।

आचार्य का मोदी सरकार से इसके पहले कई मुद्दों को लेकर टकराव हो चुका था। उन्होंने कई बार ब्याज दरों में कटौती के फैसले को लेकर असहमति भी जताई थी। आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बनाए रखने के प्रबल समर्थक थे।

उन्होंने अपने एक भाषण में केंद्र सरकार को आगाह करते हुए कहा था कि जो सरकार केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करती वह कभी न कभी वित्तीय बाजारों के कोप का शिकार होती है। ऐसी सरकार अर्थव्यवस्था की बदहाली को बढ़ावा देती है और एक दिन इस बात के लिए पछतावा करती है कि उसने एक महत्वपूर्ण नियामक संस्था को दबाया था।

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