उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में सत्तापक्ष और विपक्ष के लोग जनता को अपनी-अपनी ताक़त दिखाने की कोशिश में लगे हैं। योगी आदित्यनाथ का कहना है कि भाजपा विकास, सुशासन और राष्ट्रवाद के एजेंडे पर चुनाव लड़ने जा रही है। लेकिन जो पार्टी विकास की हर पिच पर फेल हो, वो ऐसा कैसे करेगी? जवाब आसान है- वर्चुअल रैली के दौर में ‘गोदी मीडिया’ के ज़रिए।
भाजपा और मीडिया की सांठगांठ पर चर्चा करने से पहले योगी सरकार की उपलब्धियों का सच जान लेते हैं। योगी आदित्यनाथ ने पुरानी सरकारों पर गरीबों, किसानों और युवाओं का शोषण करने के आरोप लगाए हैं। इसका मतलब उनके कार्यकाल में इन वर्गों की स्थिति सुधरनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा हुआ क्या?
सच तो ये है कि योगीराज में पिछली सरकारों के मुकाबले गरीबों की स्थिति बेहतर होने के बजाए बदतर हो गई है। योगी आदित्यनाथ के सत्ता संभालने के बाद से ही राज्य विकास के पैमानों पर पिछड़ने लगा है। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2012-17 के बीच जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, तब यूपी की विकास दर 6.92% प्रतिवर्ष थी। जनता को उम्मीद थी कि सत्ता परिवर्तन के साथ राज्य के अच्छे दिन आएंगे, सबका विकास होगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। विकास दर लगभग दो प्रतिशत से गिरकर 4.88% हो गई। योगीराज में विकास दर पिछले 3 दशकों में सबसे खराब रही है।
अब एक और आंकड़े पर नजर डाल लेते हैं। वर्तमान सरकार में प्रति व्यक्ति आय 9.23% की रफ्तार से बढ़ रही है। ये पिछली सरकार में प्रति व्यक्ति आय की बढ़ोतरी से कम है, जो कि 27.6% थी। गौरतलब कि इसमें वर्ष 2020-21 के आंकड़े शामिल नहीं है। क्योंकि तब कोरोना महामारी अपने चरम पर थी।
औद्योगिक क्षेत्र और निर्माण कार्यों के मामले में भी वर्तमान सरकार का रिकॉर्ड खराब रहा है। योगी सरकार में औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर 3.34 % रही, वहीं पिछली सरकार में ये दर 14.64 % थी। इस मंद रफ्तार का दुष्प्रभाव पड़ा नौकरियों पर और अंत में युवाओं पर।
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पांच साल के अंदर 70 लाख लोगों को नौकरी देने का वादा किया था। अब खुद योगी आदित्यनाथ ने पिछले वर्ष के नवंबर महीने में बयान दिया कि 2017 से प्रदेश में 4.5 लाख लोगों को नौकरी मिली है। उनके आंकड़ों की प्रमाणिकता पर न जाएं, तब भी ये तो स्पष्ट है कि वो अपना वादा नहीं निभा पाए।
नौकरी देने के मामले में योगी सरकार भले ही फिसड्डी नज़र आए लेकिन नौकरी लेने में ये सरकार नंबर-1 है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार यूपी में पिछले पांच सालों में 16 लाख से भी ज़्यादा लोगों की नौकरी चली गई है। साथ ही 69 हज़ार शिक्षक भर्ती घोटाला, 2018 UPPCL पेपर लीक, 2021 यूपी TET पेपर लीक जैसे अन्य युवा विरोधी घटनाएं हैं ही।
जब विकास दर कम होगी, प्रति व्यक्ति आय की विकास दर कम होगी, औद्योगिक विकास दर भी कम होगी, नौकरियों में कमी होगी; तो फिर कैसे गरीबों-किसानों-युवाओं की ज़िन्दगी बेहतर होगी? इतने खराब रिपोर्ट कार्ड के बावजूद भाजपा कैसे बड़े-बड़े दावे कर लेती है?
इसका जवाब तो शुरुआत में ही दिया जा चुका है। मीडिया का काम होता है जनता के मुद्दों को उठाना। लेकिन मुनाफाखोर मीडिया अब सत्तापक्ष का हो चुका है, इसलिए जनता का पक्ष नहीं ले पाता। जो जनता की बात करता है, उसे भी कथित मेनस्ट्रीम मीडिया ‘देशद्रोही’ घोषित करने पर उतारू हो जाता है। इस सबका परिणाम ये होता है कि मुख्यमंत्री, या यूँ कहें एक पार्टी के मुख्यमंत्री प्रत्याशी से टाइम्स नाउ अपनी रथ यात्रा का उद्घाटन करवाता है।
इस मीडिया की रिपोर्ट में जनता की आवाज़ें गौण हो जाती हैं और सत्तापक्ष की बातें प्राइम टाइम डिबेट का हिस्सा बन जाती हैं। इस तरह काम करने वाले मीडिया हाउसेस व्यापारी से ज़्यादा कुछ नहीं है।