तेज बहादुर सिंह
एक ओर आज 8 मार्च को भारत सहित पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनायाा जा रहा है, सरकार तमाम विज्ञापनों और ट्विटर हैंडल्स के जरिए महिला दिवस पर महिलाओं को सशक्त बनाने की बातें कर रही है. दूसरी ओर देश की राजधानी में ही एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की लड़कियां अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं. यहां कोई इनकी सुध तक लेने वाला नहीं है. ना ही सरकार और ना ही विश्वविद्यालय प्रशासन.
दिल्ली विश्वविद्यालय के राजीव गांधी महिला छात्रावास कॉम्प्लेक्स, मुखर्जी नगर में छात्राएं पिछले 27 फरवरी से अपनी कुछ मांगों को लेकर में धरना प्रदर्शन कर रही हैं. छात्राएं प्रशासन से काफी नाराज हैं. छात्राओं का कहना है कि छात्रावास के अंदर कई समस्याएं हैं. कर्फ्यू टाइमिंग, फीस स्ट्रक्चर सहित तमाम ऐसी समस्याएं हैं जिनको लेकर प्रशासन से कई बार बातचीत करने की कोशिश की गई हैं. लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकल पाया है. यही कारण है कि उन्हें मजबूरन धरना प्रदर्शन का रास्ता अपनाना पड़ा है.
यह प्रदर्शन पिछले 11 दिनों से लगातार जारी है. इस बीच दिल्ली का मौसम भी खराब हो गया है. लेकिन छात्राएं फिर भी लगातार प्रदर्शन करने को मजबूर हैं. प्रशासन की ओर से अभी तक कोई भी उनकी सुध लेने नहीं आया है. छात्राओं का कहना है कि छात्रावास के अंदर पिछले कई सालों से लड़कियों के ऊपर प्रतिबंध लगाने के लिए अजीबो-गरीब नियम-कानून बना दिए गए हैं.
हॉस्टल में रहने वाली आकांक्षा बताती हैं कि हॉस्टल की वार्डेन पूरी तरह से पितृसत्तात्मक सोच से बंधी हुई हैं. लड़कियों के ऊपर व्यक्तिगत छींटाकशी और उनके कपड़ों तक पर कमेंट्स करना उनके लिए आमबात है. मेस के अंदर अगर आप बिना बताए खाना नहीं खाते हैं तो पहली बार सौ रूपए फाइन देना पड़ता है जबकि दूसरी बार ऐसा करने पर पांच सौ रूपए तक फाइन देना होता है. अगर आपको हॉस्टल लौटने में देर होती है तो एप्लीकेशन के साथ आपको सौ रूपए फाइन भी देना होगा. तभी आपकी इंट्री होगी. वो सवाल करते हुए कहती है, “हम जानना चाहते हैं कि आखिर ये कौन सी गाइडलाइन है? जिसमें हर बात पर छात्राओं से पैसे वसूलना लिखा हुआ है.”
आकांक्षा आगे बताती हैं कि हमने जब वार्डन पर प्रेशर बनाया और उनसे बात करने की कोशिश की तो वो जाने लगी. इस पर हमने कहा कि आप ऐसे गेट से बाहर नहीं जा सकती हैं. आपको हमसे बात करनी होगी. क्योंकि आपके अनुसार लड़कियां रात को बाहर नहीं जा सकती हैं. इस पर वार्डेन ने हमसे कहा कि ‘मैं मर्द हूं, तुम सारी औरतों के लिए’. ये साफ-साफ उनकी पितृसत्तात्मक सोच को दर्शाता है.
अंबेडकर-गांगुली छात्रावास में रहने वाली प्रिया कहती हैं, “प्रशासन की ओर से एक ‘मोस्ट अर्जेन्ट मीटिंग’ की कॉल थी जो अब तक नहीं हो पाई है. इसके अलावा छात्राएं जब भी अपनी शिकायतें लेकर वार्डेन के पास जाती हैं तो उन्हें यह कह कर वापस कर दिया जाता है कि उनके पास कोई अथॉरिटी नहीं है. ऐसे में सवाल ये है कि आखइर अथॉरिटी है किसके पास?”
हालांकि जब हमने अंबेडकर-गांगुली छात्रावास की वार्डेन के. रत्नावली से फोन पर बात की तो उन्होंने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया.
क्या हैं छात्राओं की प्रमुख मांग –
-छात्रावास परिसर के अंदर यूजीसी की गाइडलाइन और सक्षम कमेटी की रिपोर्ट तत्काल प्रभाव से लागू हो.
-महिला छात्रावासों से कर्फ्यू टाइमिंग हटाई जाए.
-सुरक्षा के नाम पर लड़कियों की मॉनिटरिंग और उनपर प्रतिबंध लगाने बंद किए जाएं.
-छात्रावासों में SC/ST/OBC/PWD आरक्षण को पूरी तरह से लागू किया जाए.
-छात्रावास आवंटन के समय इंटरव्यू की व्यवस्था खत्म की जाए. इसमें लड़कियों की मोरल पुलिसिंग होती है.
-छात्रावासों में स्वास्थ्य सुविधा का समुचित प्रबंध किया जाए.
-छात्रावास का आवंटन पूरे अकादमिक सत्र के लिए किया जाए और छुट्टियों में छात्रावास खाली न कराया जाए.
-छात्रावासों के प्रोवोस्ट और वार्डेन का चुनाव पारदर्शी हो.
-छात्रावासों के फीस स्ट्रक्चर को पारदर्शी बनाया जाए.
अंबेडकर- गांगुली छात्रावास में ही रहने वाली अमिषा नंदा कहती हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है कि पांचों गर्ल्स हॉस्टल की लड़कियों ने मिलकर अपनी मांगों के लिए एक साथ लड़ाई शुरू की है. उनका कहना है, “हमारी मांगों को ध्यान से देखा जाए तो उसके केंद्र में महिलाओं का शोषण है. किताबों में स्वतंत्रता, समानता और आजादी की बातें पढ़ने से कुछ नहीं होगा अगर हम उसे अपने आम जमीन में नहीं उतार पाएंगे.”
दिल्ली विश्वविद्यालय के महिला छात्रावासों का यह कॉम्प्लेक्स मुखर्जी नगर में है. इस कॉम्प्लेक्स के अंदर कुल पांच हॉस्टल हैं. छात्राओं का ये भी कहना है कि उनके लिए भी लाइब्रेरी की व्यवस्था चौबीस घंटे की जाए. लेकिन ये तभी संभव हो पाएगा जब हॉस्टल की कर्फ्यू टाइमिंग समाप्त की जाए. हॉस्टल की फीस में लड़के और लड़कियों में भेदभाव किया जाता है. लड़कों की फीस लगभग चालीस हजार रूपए है और लड़कियों की फीस लगभग एक लाख रूपए, ऐसा क्यों है ?
छात्राओं ने हॉस्टल प्रशासन पर ये आरोप लगाया है कि उनके घरों में लेटर भेजकर और फोन करके उन्हें डराने-धमकाने की कोशिश की जा रही है. धरने पर बैठी इन लड़कियों से ये भी कहा जा रहा है कि ये सब पढ़ने- लिखने वाली लड़कियां नहीं हैं. इनका तो काम ही धरना प्रदर्शन करना और कैंपस में अव्यवस्था फैलाना है.
गौरतलब है कि छात्राएं दिन-रात हॉस्टल के मेन गेट के पास सड़क पर खुले आसमान के नीचे धरने पर बैठी हैं. छात्राओं की सुरक्षा के नाम पर सिर्फ दो पुलिसकर्मी कैंपस में मौजूद रहते हैं.