इन दिनों भारतीय जनता पार्टी (BJP) के ज़्यादातर होर्डिंग्स और बैनरों पर भारतीय सेना की तस्वीर नज़र आ रही है। बीजेपी सांसद मनोज तिवारी तो ख़ुद ही सेना की वर्दी में दिखाई दे रहे हैं। विपक्ष और राजनीतिक जानकारों का दावा है कि बीजेपी का यह सेना प्रेम लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र है।
हालांकि, बीजेपी इन दावों को बेबुनियाद करार देते हुए केंद्र की मोदी सरकार को सेना का हितैशी बता रही है। लेकिन सरकार को सेना के हितों की कितनी चिंता है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तीन साल पहले जम्मू-कश्मीर के सियाचिन में शहीद हुए कर्नाटक के लांसनायक हनुमंथप्पा के परिवार से किए गए वादे को सरकार ने अभी तक पूरा नहीं किया है।
उस समय केंद्र और राज्य सरकारों ने जवान के घरवालों को नौकरी, घर और जमीन देने का वादा किया था। साथ ही उनकी 5 साल की बेटी की पढ़ाई का ख़र्चा भी उठाने की बात कही गई थी। लेकिन जवान की पत्नी महादेवी को अब तक कोई नौकरी नहीं मिली है। उनके पास अब इतने पैसे भी नहीं है जिससे वह अपनी बेटी को पढ़ा सकें।
महादेवी बताती हैं, ‘दो साल पहले मुझे केंद्र सरकार की तरफ से एक पत्र मिला था। इसमें मुझसे धारवाड़ जिले में रेशम उत्पादन विभाग में नौकरी करने के संबंध में पूछा गया था। मैंने वहां छह से आठ महीने तक अस्थायी कर्मचारी के रूप में काम किया। इस दौरान मुझे छह हजार रुपये वेतन दिया गया। जब मैंने अधिकारियों से अपनी नौकरी पक्की करने की बात की तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
शहीद जवान की पत्नी के मुताबिक, ‘उन्होंने नौकरी पाने के लिए काफी मशक्कत की। उन्होंने मुख्यमंत्री, कलेक्टर से लेकर कई विभागों को इस संबंध में पत्र भेजा लेकिन कोई जवाब नहीं आया। इसके बाद स्थायी नौकरी पाने की मेरी सारी आशाएं खत्म हो गईं।’
महादेवी ने बताया, ‘केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने मुझे सरकारी नौकरी दिलाए जाने को लेकर एक ट्वीट किया था। उनके हुबली आने पर मैंने उनसे मुलाकात की तो उन्होंने ऐसा कोई ट्वीट किए जाने से इनकार कर दिया। सरकारों की असंवेदनशीलता को देखते हुए अब मैंने नौकरी के लिए कहना छोड़ दिया है।’
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने इसपर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने फेसबुक के ज़रिए कहा, ‘तीन साल पहले सियाचिन में शहीद होने वाले लांसनायक हनुमंथप्पा को पूरे देश ने सल्यूट किया था। लेकिन सरकार ने आज तक उनकी पत्नी को नौकरी नहीं दी है’।
उन्होंने इसकी तुलना यूपी पुलिस के फेक एनकाउंटर में विवेक तिवारी की मौत के बाद उनकी पत्नी को तुरंत नौकरी दिए जाने से करते हुए कहा, ‘जबकि लखनऊ में सड़क पर रात में घूमने के दौरान पुलिस की गोली से मारे गए विवेक तिवारी की विधवा को सातवें दिन अफसर की नौकरी दी गई और खुद उपमुख्यमंत्री ने उनके घर जाकर अप्वायंटमेंट लेटर पकड़ाया। ये सब नरेंद्र मोदी सरकार के शासन में हुआ’।
बता दें कि लांसनायक हनुमंथप्पा सियाचिन में छह दिन तक 25 फीट बर्फ के नीचे दबे रहे। उनको चमत्कारिक रूप से जीवित अवस्था में सेना ने बाहर निकाल लिया था लेकिन उनकी तबीयत इतनी ज्यादा खराब हो गई थी कि उन्हें बचाया नहीं जा सका।