राफेल की फाइल की चोरी होने के बाद अब नया वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। ये वीडियो तबकी है जब राफेल सौदा हुआ था और तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर इस मामले पर अपनी बात रख रहें है।

पार्रिकर के इस इंटरव्यू में कई बातें ऐसी है जिसपर सवाल उठ सकता है साथ ही पार्रिकर जो बातें कहते हुए नज़र आ रहें है उसपर विपक्ष के आरोपों को बल मिल सकता है।

दरअसल आईबीएन 7 को दिए इंटरव्यू में तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर ने राफेल डील हो जाने के बाद अपना पहला इंटरव्यू दिया था। जब इस डील के बारें में पार्रिकर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि फाइनल डिटेलिंग तो नहीं पता प्रधानमंत्री जब तक नहीं आ जाते एनएसए ने फोन पर इनफार्मेशन दी है।

इसके बाद एंकर पूछते है कि क्या राफेल सौदे में और कोई भी शामिल हो सकता है? इसपर मनोहर पार्रिकर कहते है कि अब प्राथमिकता के तौर पर तो एचएएल (हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड) को मिलना चाहिए।

अब इस वीडियो को अगर पहली नज़र से देखा जाये तो इससे जुड़कर कई सवाल उठते है। पहला रक्षा सौदे की जानकारी एनएसए यानी की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने फोन पर जानकारी दी क्या रक्षा सौदे की जानकारी फोन पर देना सुरक्षित था या है?

दूसरी सवाल जो द हिंदू की रिपोर्ट में एन राम ने पिछले दिनों कहा था कि राफेल सौदे को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) दिसंबर 2015 के बाद से अलग से बात कर रहे थे।

पीएमओ और एनएसए के दखल के चलते ही राफेल सौदे की बात कर रही भारतीय टीम का पक्ष कमजोर हुआ था। इसके बाद हुआ ये कि जब भारतीय निगोशिएटिंग टीम ने मार्च 2016 में फ्रांस से बैंक गारंटी की मांग की और कानून मंत्रालय की सलाह का हवाला दिया, तो फ्रांसीसी पक्ष इस मुद्दे से हट गया और उसने जनवरी 2016 में हुए एक एमओयू (सहमति पत्र) की बात की और इस मामले में औपचारिक बातचीत पीएमओ से करने पर जोर दिया।

वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उसने राफेल सौदा पहले से बेहतर शर्तों पर किया है। जबकी सीएजी रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि 2007 के प्रस्ताव में दसॉल्ट एविएशन ने वित्तीय और प्रदर्शन गारंटी (फाइनेंशियल एंड पर्फार्मेंस गारंटी) की पेशकश की थी और इसकी कीमत सौदे में जोड़ी गई थी। लेकिन 2015 के प्रस्ताव में किसी भी बैंक गारंटी का जिक्र नहीं है।

ऐसे में सौदे से विमान बेचने वाली कंपनी को कुल बचत करीब ‘एएबी3 मिलियन यूरो’ हुई है। मंत्रालय ने ऑडिट गणना में माना है कि बैंक गारंटी न मिलने से रक्षा मंत्रालय को बचत हुई है। लेकिन, ऑडिट का मानना है कि इससे दरअसल दसॉल्ट एविएशन को फायदा हुआ है।

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