गृह मंत्रालय के मुताबिक, देश में महिलाओं और बच्चों के साथ हो रहे यौन अपराधों में से केवल 32% मामलों की ही जाँच 60 दिनों के भीतर पूरी हो रही है।

दरअसल, गृह मंत्रालय के ITSSO (इन्वेस्टीगेशन ट्रैकिंग सिस्टम फॉर सेक्सुअल ओफ्फेंसेस) की स्टडी में पाया गया है कि महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ हो रहे दर्ज यौन उत्पीड़न के मात्र 32% मामलों की जांच 2 महीनों में पूरी की जा रही है।

दो महीने, यानी कि 60 दिनों की जांच का समय बलात्कार के केस में महत्वपूर्ण है। आपराधिक कानून (संशोधन) एक्ट, 2018 से CrPC के सेक्शन 173 में बदलाव करके “बलात्कार मामलों में 2 महीने के भीतर जांच करने” का कानून बनाया गया था।

‘द हिन्दू’ की रिपोर्ट के मुताबिक ITSSO की स्टडी में पाया गया कि 21 अप्रैल, 2018 से लेकर 24 नवंबर, 2020 तक महिलाओं और बच्चों के खिलाफ़ कुल 1,72,471 यौन उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए। इनमें से 1,64,449 मामले डाटा रिकॉर्ड करने के 2 महीने पहले तक दर्ज किए गए।

लगभग 32% मामलों की जांच 2 महीने की अवधि के भीतर पूरी हुई। 44% मामलों की अंतिम जांच दो महीने से अधिक समय में पूरी हुई।

ये आंकड़े इसलिए भी डराने वाले हैं क्योंकि ये दर्ज हुए केस पर आधारित हैं। आज भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपने साथ हो रहे यौन अत्याचार के खिलाफ़ शिकायत दर्ज नहीं करवाते। जो केस दर्ज होते हैं, उनकी जांच तय अवधि में पूरी नहीं होती।

इन आंकड़ों के कारण देश की कानून व्यवस्था पर भी सवाल खड़े होते हैं। ‘बेटी बचाना’ तो छोड़िए, बच्चों को सुरक्षा देने के दावे की बात तो छोड़िए, क्या शोषित बच्चों को इंसाफ़ भी मिलेगा?

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