मोदी सरकार का का दावा है कि उन्होंने पिछले पांच साल में देश की अर्थव्यवस्था सुधार दिया है। लेकिन इस दावे पर कई सवाल उठ रहे हैं। इस बार ये सवाल किसी और ने नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की चीफ गीता गोपीनाथ ने उठाया है। गीता का कहना है कि उन्हें भारत की विकास दर पर संदेह है।
गीता गोपीनाथ ने बिज़नेस न्यूज़ चैनल CNBC को बताया कि, “जो नए आंकड़ें आ रहे हैं, हम उनपर नज़र बनाए हुए हैं। हम लगातार अपने भारत के सहयोगियों से संपर्क बनाए हुए हैं और उसके आधार पर हम आंकलन करेंगे।”
गीता ने ये भी कहा कि 2015 में हुए बदलाव के बावजूद अभी भी भारत के GDP कैलकुलेट करने के तरीके में कुछ कमियां हैं। GDP को कैलकुलेट करने के लिए इस्तेमाल होने वाले Deflator से हम संतुष्ट नहीं हैं। इसपर हमने पहले भी सवाल खड़े किए हैं।
CAG रिपोर्ट से बड़ा खुलासा: मोदी ने 4 लाख करोड़ का खर्च छुपाया, अर्थव्यवस्था झेलेगी बड़ा नुकसान!
दरअसल, Deflator को GDP के कैलकुलेशन में इस्तेमाल किया जाता है जो मुद्रास्फीति, यानी कि इन्फ्लेशन का हिसाब लगता है। बता दें कि गीता गोपीनाथ ने 2015 में मोदी सरकार द्वारा GDP को कैलकुलेट करने के तरीके में हुए बदलाव का समर्थन किया था। लेकिन अब गीता गोपीनाथ को लगता है मोदी सरकार GDP के जो आंकड़े दे रही है वो ठीक नहीं है।
गीता अकेली ऐसी शख्स नहीं हैं जो भारत के GDP कैलकुलेट करने के तरीके पर सवाल उठा रही हैं। इससे पहले मार्च में पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि भारत के GDP और रोज़गार डाटा में कोई मेल-जोल नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश का GDP जितनी तेज़ी से बढ़ रहा है, उतनी तेज़ी से देश में रोज़गार पैदा नहीं हो रहे हैं।
IMF की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने एक बार फिर की नोटबंदी की आलोचना, बोलीं- 2 प्रतिशत घट गई विकास दर
रघुराम राजन की ही तरह इंदिरा गाँधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेवलपमेंट रीसर्च के प्रोफेसर आर.नागराज ने कहा था कि अगर रोज़गार में कमी आ रही है तो GDP भी कम होगा। ऐसी स्थिति में GDP तभी बढ़ सकता है जब हर वर्कर पहले से ज्यादा उत्पादन करे, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। इसी के साथ-साथ 108 अर्थशास्त्री और सामाजिक वैज्ञानिक भी सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठा चुके हैं।
अब ये मोदी सरकार के लिए सोचने वाली बात है कि आखिर आंकड़ें पेश करने में ऐसी कौन सी कमी रह गयी जो देश से लेकर IMF तक उनपर सवाल उठा रहे हैं? कहीं मोदी सरकार में GDP के आंकड़ों के साथ सही में छेड़छाड़ तो नहीं किया गया? अगर ऐसा है तो क्या फिर इस बार चुनावों में भाजपा कि ओर से किए जा रहे वादों को गंभीरता से लिया जाएगा? क्योंकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का वादा तो वो 2014 में भी कर चुकी है।