मोदी सरकार की फ़जीहत वैसे तो कई वादों को लेकर हो रही है जो उन्होंने 2014 में किये थे और सत्ता में आने पर वो पूरे नहीं हुए। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे ज़्यादा विरोध रोजगार के मोर्चे पर हो रहा है। क्योंकि स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।

अब तक ये कहा जा रहा था कि सरकारी क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र में नौकरियां नहीं हैं लेकिन निजी कंपनियों यानी कॉर्पोरेट में अभी भी हालात बहतर हैं। लेकिन अब जो आंकड़ें सामने आए हैं उसमें साफ़ नज़र आ रहा है कि अब वहां भी स्थिति सोचनीय स्तर पर पहुँच चुकी है।

कैपिटालाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की शीर्ष 171 कंपनियों में वर्ष 2017-18 में 35 लाख लोगों की भर्ती हुई है। जबकि 2013-14 में ये संख्या 1.80 करोड़ थी। मतलब तब के मुकाबले आज 1.45 करोड़ लोग सालाना ज़्यादा बेरोजगार हो रहे हैं।

वित्त वर्ष 2017-18 में देश की शीर्ष कंपनियों की कुल कर्मचारी संख्या में महज 1.9 फीसदी की वृद्धि ही दर्ज की गई है। जबकि वर्ष 2013-14 में ये वृद्धि दर 6.2% थी।

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विडंबना ये है कि जब मोदी जी 2014 में सालाना दो करोड़ नौकरियां देने की बात कर रहे थे तब देश में लगभग इतनी नौकरियां निजी क्षेत्र में पैदा हो रही थी। लेकिन उनके के बाद स्तिथि उल्टा बिगड़ गई और अब निजी क्षेत्र में 35 लाख नौकरियां सालाना पैदा हो रही हैं।

कैपिटालाइन के पास उपलब्ध आंकड़े और इन कंपनियों की वार्षिक रिपोर्ट में दी गई सूचनाओं के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है।

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इक्विनॉमिक्स रिसर्च ऐंड एडवाइजरी सर्विसेज के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम कहते हैं, ‘कुछ साल पहले तक ढांचागत क्षेत्र खास तौर पर निर्माण गतिविधियां निचले स्तर पर रोजगार सृजन के मामले में सबसे आगे होती थीं।

वहीं आईटी सेवाओं की निर्यातक कंपनियों में ऊंचे वेतन के स्तर पर सर्वाधिक नए अवसर पैदा होते थे। लेकिन अब ये दोनों ही क्षेत्र वृद्धि के मामले में नीचे की ओर हैं।’

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