नए संसद भवन के पास अशोक स्तंभ की स्थापना को लेकर प्रधानमंत्री की भूमिका पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
अशोक स्तंभ के अनावरण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में ब्राह्मण पुजारियों द्वारा पूजा करवाए जाना बहुजन चिंतकों के लिए आपत्ति का विषय बनता जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस करतूत का जगह-जगह विरोध किया जा रहा है।
इसी क्रम में वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल सोशल मीडिया पर लिखते हैं, “अशोक स्तंभ बौद्ध प्रतीक है। अब वह राष्ट्रीय प्रतीक है। नए संसद भवन में अशोक स्तंभ की स्थापना करने के लिए ब्राह्मणों को बुलाकर पूजा और पाखंड करना न सिर्फ इतिहास की परंपरा के खिलाफ है बल्कि असंवैधानिक भी है।
ये महान बौद्ध विरासत को हड़पने की कोशिश भी है। इस मौक़े पर अगर बुलाना ही था तो बौद्ध भंते जी को बुलाते। या किसी को न बुलाते।”
एक अन्य पोस्ट में दिलीप मंडल लिखते हैं, “अशोक स्तंभ का मूल स्वरूप सारनाथ संग्रहालय में रखा है। वही छवि डाक टिकटों से लेकर सरकारी दस्तावेज़ों में है। उनमें शेर की शांत मुद्रा है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म के प्रचार के लिए ऐसे स्तंभ लगाए थे।
आज प्रधानमंत्री ने जिस तथाकथित अशोक स्तंभ की ब्राह्मण रीति से नए संसद भवन में स्थापना की उसमें शेर बहुत नाराज़ और उग्र है। परेशान भी है।
क्या आपने गौर किया?”
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को बखूबी जानते होंगे कि अशोक स्तंभ का संबंध हिंदू धर्म से है या बौद्ध धर्म से। वो यह भी जानते होंगे की ब्राम्हण पुजारियों द्वारा वहां पूजा पाठ करवाना खुद सम्राट अशोक के उसूलों के खिलाफ है।
मगर यह सब जानते हुए भी वह ऐसे कर्मकांड कर रहे हैं तो इससे BJP, RSS के सांस्कृतिक अतिवाद के एजेंडे को बखूबी समझा जा सकता है।