समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस में फैसले की कॉपी सार्वजनिक होने के बाद अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की निष्पक्षता शक के घेरे में आ गई है। इस मामले में फ़ैसला देने वाले पंचकुला स्पेशल कोर्ट के जज जगदीप सिंह का कहना है कि एनआईए ने जानबूझकर केस को कमज़ोर किया, जिसकी वजह से आरोपियों को सज़ा नहीं दी जा सकी।

जज जगदीप सिंह ने अपने फैलसे में कहा कि एनआईए सबसे मजबूत सबूत ही अदालत में पेश करने में विफल रही, साथ ही मामले की जांच में भी कई लापरवाही बरती गई। बता दें कि, ​​20 मार्च को समझौता ब्लास्ट मामले में आरोपी स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को सबूतों के भाव में कोर्ट ने बरी कर दिया था।

जज जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा कि, ‘मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से हिंसा के इस नृशंस कृत्य में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका। अभियोजन के साक्ष्यों में निरंतरता का अभाव था और आतंकवाद का मामला अनसुलझा रह गया।’

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गुरुवार को 160 पन्नों का वह आदेश जारी किए गए, जिसमें विशेष एनआईए अदालत के न्यायाधीश जगदीप सिंह ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा “सबसे महत्वपूर्ण सबूतों को पेश नहीं किया गया और न ही उन्हें रिकॉर्ड पर लाया गया।

इसके अलावा कई स्वतंत्र गवाहों से पूछताछ नहीं की गई। जब उन्होंने अभियोजन मामले का समर्थन करने से मना कर दिया तो उन्हें जिरह के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया।

क्या है मामला

18 फरवरी, 2007 को हरियाणा के पानीपत में भारत-पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस ट्रेन में ज़ोरदार ब्लास्ट हुआ था। उस वक्त ट्रेन अटारी जा रही थी जो भारत की तरफ का आखिरी स्टेशन है। इस बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत हो गई थी। एनआईए ने जुलाई 2011 में आठ लोगों के खिलाफ आतंकवादी हमले में उनकी कथित भूमिका के लिए आरोप पत्र दायर किया था।

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