सोशलवाणी: जस्टिस काटजू

मी लॉर्ड, आर्टिकल 21 भूल गए हैं जिसके जरिए संविधान हमें जीने का अधिकार देता है।

मैं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बेहद दुखी हूं- जिसमें कहा गया है कि 17 राज्यों के जंगलों में रहने वाले 10 लाख से ज्यादा आदिवासियों को जमीन खाली करके जाना होगा।

मेरी अगुवाई में बनी बेंच द्वारा सुप्रीम कोर्ट (कैलाश वर्सेस स्टेट ऑफ महाराष्ट्र) का फैसला आया था। उसके मुताबिक, भारत प्रवासियों का देश है (जैसे कि नार्थ अमेरिका) यहाँ की 93 से 94% आबादी प्रवासियों की वंशज है।

यहां पर मूलनिवासी तो द्रविड़ियन आदिवासी हैं (मसलन भील, गोंड, संथाल ,टोडा जैसे आदिवासी) जिनका बेरहमी से कत्ल किया गया, जिनके साथ आक्रांता प्रवासियों ने बुरा बर्ताव किया और उन्हें जंगलों में रहने के लिए मजबूर कर दिया। ताकि वो अपना वजूद बचा सकें।

और अब उन्हें जंगलों से भी भगाया जा रहा है। वह अब कहां जाएंगे ? क्या उन्हें अब समुद्र में फेंक दिया जाएगा ? या गैस चैंबर में डाल दिया जाएगा ? क्या फॉरेस्ट एक्ट संविधान द्वारा प्रदत्त आर्टिकल 21 के ऊपर है ?

आदिवासियों के अधिकारों को बचाने में नाकाम रही मोदी सरकार, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से विस्थापित होंगे 11 लाख आदिवासी

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