जेएनयू छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता रहे कन्हैया कुमार और अब राजनेता बने कन्हैया कुमार में बहुत कुछ बदल चुका है। देश के युवाओं ने उनके आक्रामक तेवर को जिस तरह पसंद किया था, बीजेपी की मनमानी के खिलाफ उनके तर्कों को जिस तरह से अपनाया था, कन्हैया अब उसकी ही लाज रखते हुए नजर नहीं आ रहे हैं।

वो मुख्यधारा की राजनीतिक की तमाम बुराइयों धीरे धीरे अपनाते चले जा रहे हैं।

आज से ठीक एक साल पहले 27 अप्रैल 2018 को कन्हैया कुमार ने शिवराज चौहान से जुड़ी हुई न्यूज़ शेयर करते हुए लिखा था- ‘जब काम नहीं किया तो ढिंढोरा पीटने के लिए पूरा अखबार सरकारी खर्चे पर विज्ञापनों से भर दिया जाता है आपको अपने देश के किसानों विद्यार्थियों से मिलने वाली सरकारी मदद के खिलाफ उकसाया जाता है और बड़े उद्योगपतियों के बड़े-बड़े लोन माफ कर दिए जाते हैं’

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तब इसे हजारों लोगों ने पसंद किया और री-ट्वीट भी किया। किसे पता था कि ठीक एक साल बाद कन्हैया कुमार भी वही सभी राजनीतिक हथियार अपनाएंगे जिनकी बुराई करते आए हैं।

27 अप्रैल 2019 को बेगूसराय के प्रमुख अखबारों के फ्रंट पेज कन्हैया कुमार के विज्ञापन से पटे पड़े है और ये वही अखबार हैं जिन्हें हमेशा कन्हैया कुमार ‘गोदी मीडिया’ और ‘कॉरपोरेट का मीडिया’ कहकर आलोचना करते हैं।

तो क्या चुनावी राजनीति में जाते ही गोदी मीडिया और कॉरपोरेट मीडिया के साथ लाखों का लेनदेन जस्टिफाई हो गया ?

अखबारों के फ्रंट पेज पर आया विज्ञापन कुछ ही घंटों पर सोशल मीडिया पर वायरल हो गया कि पूंजीवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने का दिखावा करने वाले कन्हैया कुमार अब वो सारे पूंजीवादी हथकंडे अपना रहे हैं,

धन बल की राजनीति का खुला विरोध करने वाले कन्हैया कुमार सबसे ज्यादा धन बल दिखा रहे हैं,

खुद को गरीब प्रोजेक्ट करने वाले कन्हैया कुमार अब लाखों रुपए के विज्ञापन निकाल रहे हैं।

कन्हैया जिसे गोदी मीडिया बताते रहे अब उसी मीडिया के साथ आर्थिक लेनदेन करके जनता में अपनी छवि बना रहे हैं।

हिंदुस्तान न्यूज़ पेपर, दैनिक जागरण और प्रभात खबर के फ्रंट पेज पर छपे कन्हैया के विज्ञापन को शेयर करते हुए फेसबुक यूजर आलोक कुमार लिखते हैं-

”#कामरेड कन्हैया #पूंजीवाद से #आज़ादी_कैसे_मिलेगी ? 1- हिन्दुस्तान न्यूज़ पेपर जिसके मालिक इस देश एक बड़े पूंजीपति के.के. बिरला का परिवार है | हिन्दुस्तान न्यूज़ HT Media ग्रुप के द्वारा चलाया जाता है जिसका एसेट 834 करोड़ रुपया है | 2-दैनिक जागरण जो Jagran Prakashan Ltd के द्वारा चलता है | इस कम्पनी का प्रोफिट लगभग 2000 करोड़ रूपये है| 3-प्रभात खबर वाला भी करोडो का मालिक है | इस प्रचार तंत्र ने तुम्हारी सारी पोल खोल दी और लोगो अब ये पता चल गया कि कामरेड कन्हैया अब पूंजीपतियों के गोद में खेल रहा है|”

इसी बहस को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल लिखते हैं- ‘धन बल के सहारे, वोट काटकर, सजातीय बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह की जिताने की कोशिश करने वालों ने आज यहाँ के सभी अख़बारों का पहला पन्ना एक साथ ख़रीद लिया।

ये काम अब तक सिर्फ नरेंद्र मोदी करते आए हैं।

लेकिन वे भूल रहे हैं कि जनता ही मालिक है।

वो राष्ट्रीय जनता दल की अगुवाई वाले महागठबंधन के उम्मीदवार तनवीर हसन द्वारा जारी किए गए पोस्टर और कन्हैया कुमार द्वारा दिए गए विज्ञापन की तुलना करते हुए लिखते हैं-

‘इस पोस्टर की एक एक चीज़, फ़ोटो, लिखा शब्द ग़ौर से दिखिए।

‘देश के हर सेकुलर, सामाजिक न्याय समर्थक दलों के नेताओं का समर्थन, बेगूसराय के सात में से पाँच विधायकों का समर्थन, पाँचों दलों के जिलाध्यक्षों का समर्थन।

तनवीर हसन ही टक्कर में है।

धन बल के सहारे, वोट काटकर, सजातीय बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह की जिताने की कोशिश करने वालों ने आज यहाँ के सभी अख़बारों का पहला पन्ना एक साथ ख़रीद लिया।

ये काम अब तक सिर्फ नरेंद्र मोदी करते आए हैं।

लेकिन वे भूल रहे हैं कि जनता ही मालिक है।’

कॉर्पोरेट मीडिया जो अब गोदी मीडिया हो चुका है, उसके साथ लेनदेन से ना सिर्फ कन्हैया कुमार की साख दांव पर लग गई है बल्कि ऐसे तमाम पत्रकार हैं जिन्होंने हर संभव कोशिश की है कि कन्हैया कुमार को गरीब मां का बेटा ही प्रोजेक्ट किया जाए, उनकी छवि को भी नुकसान हुआ है।

कन्हैया का एक इंटरव्यू लेते हुए ‘द वायर’ की पत्रकार आरफा खानम बार बार इस बात को ‘प्रोजेक्ट’ करती हैं कि कन्हैया कुमार एक गरीब उमीदवार हैं और गिरिराज एवं तनवीर हसन के पास धनबल एवं बाहुबल है। क्या अब भी वह यही बात दोहरा पाएंगी कि कन्हैया कुमार के पास कोई धनबल नहीं है ?

इसी तरह से रवीश कुमार समेत अन्य पत्रकारों ने भी कन्हैया कुमार को गरीब, काबिल एवं सबसे अलग उम्मीदवार बताने की तमाम कोशिशें की।कन्हैया कुमार की इस हरकत से रवीश जैसे पत्रकारों के साख पर भी आंच आई है।

हालांकि कन्हैया को ऐसा करने की पता नहीं क्या जरूरत आ पड़ी क्योंकि कन्हैया कुमार तो वो उम्मीदवार हैं जिन्हें इस बार के चुनाव में सबसे ज्यादा मीडिया कवरेज दी गई। अगर इसके बावजूद वह अखबारों के फ्रंट पेज पर विज्ञापन दे रहे हैं तो फिर उनका भी वही डर है जिसका एक साल पहले उन्होंने जिक्र किया था और शिवराज सिंह चौहान के बारे में लिखा था ।

इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा आम जनता के मुताबिक काम नहीं करती है इसलिए उसे अपने काम को दिखाने के लिए बार-बार विज्ञापन का सहारा लेना पड़ता है लेकिन उसकी इस राजनीति का विरोध करने वाले अगर खुद यही हथकंडे अपनाने लगेंगे तो सवाल उठना लाजमी है।

खैर, चुनावी राजनीति में आ जाने पर बहुत कुछ बदल जाता है। ऐसे ही पिछले कुछ दिनों में कन्हैया के तमाम समर्थकों की राय भी बदली है।

बाहुबली पप्पू यादव के समर्थन की खबर हो या फिर जावेद अख्तर द्वारा गिरिराज सिंह के लिए वोट मांगने वाला बयान, इन खबरों से तमाम उन लोगों में नाराजगी देखने को मिली है जो कन्हैया कुमार का कहीं ना कहीं और कभी ना कभी समर्थन करते रहे हैं।

इससे पहले महागठबंधन धड़े के तमाम लोग पहले से ही नाराज़ चल रहे थे क्योंकि ना सिर्फ कन्हैया कुमार के समर्थक बल्कि खुद कन्हैया कुमार भी उस तनवीर हसन को खारिज कर रहे थे और लड़ाई से बाहर बता रहे थे जिसने कथित मोदी लहर में भी भोला सिंह को कड़ी टक्कर देते हुए पौने 4 लाख वोट पाए थे। (संदर्भ- कन्हैया को उम्मीदवार घोषित किए जाने पर की गई PC)

किसको कितना जनसमर्थन है और ये जनसमर्थन कितना वोट में बदलेगा ये तो 29 अप्रैल को होने वाले चौथे चरण के चुनाव और 23 मई को आने वाले चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा। लेकिन इन नवोदित राजनेताओं को इस बात का ख्याल रखना होगा कि जिसकी बुनियाद पर आपकी अपनी राजनीति खड़ी है उसके ठीक उलट काम करने से बड़ा नुकसान हो सकता है।

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