पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में आरएसएस कार्यकर्ता (RSS Worker) बंधु प्रकाश पाल की मंगलवार को उसकी पत्नी और बेटे समेत हत्या कर दी गई। क्योंकि हत्या आरएसएस कार्यकर्ता की हुई तो इसपर राजनीति भी तेज़ हो गई।

बीजेपी नेताओं ने राज्य की ममता बनर्जी सरकार को घेरते हुए ख़ून का बदला खून से लेने की बात कह डाली तो राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने भी तुरंत एक्शन में आते हुए राज्य सरकार से इसपर रिपोर्ट तलब कर ली। साथ ही राज्यपाल ने ममता सरकार को आड़े हाथों लेते हुए इस हत्याकांड को लोकतांत्रिक व्यवस्था पर धब्बा बता दिया। वहीं विश्व हिंदू परिषद (VHP) की बात करें तो उसने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने तक की बात कर डाली।

बंगाल की इस हत्या पर सड़कों से लेकर टीवी स्टूडियो तक खूब हंगामा हुआ। हत्या पर ऐसा हंगामा होना भी चाहिए। यक़ीनन हत्या कानून व्यवस्था की नाकामी का नतीजा है। इसलिए सरकार पर सवाल उठना चाहिए। लेकिन हत्या का विरोध सेलेक्टिव हो, तो इसको कटघरे में भी खड़ा करना चाहिए।

बंगाल में RSS कार्यकर्ता की मौत पर ‘दंगल’ करने वाले सरदाना को UP में पुष्पेंद्र की मौत क्यों नहीं दिखती?

सवाल ये है कि बंगाल की हत्या के विरोध में राष्ट्रपति शासन की मांग करने वाले लोग क्या यूपी में कथित तौर पर पुलिस द्वारा पुष्पेंद्र यादव की हत्या पर भी अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं? अगर नहीं, तो इसपर सवाल पूछा जाना चाहिए।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेता कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) ने हत्या को लेकर लोगों के सेलेक्टिव विरोध पर अफसोस ज़ाहिर किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “हत्या चाहे यूपी पुलिस द्वारा पुष्पेंद्र यादव की हो या अपराधियों द्वारा बंगाल के बंधु प्रकाश पाल के परिवार की, अगर आप इंसान हैं तो आपको हिंसा और सरकारी विफलता पर तकलीफ़ बराबर होगी। अगर ऐसा नहीं है तो आपको विचार करना होगा कि राजनीति कहीं आपके भीतर के इंसान को मार तो नहीं रही है?”   

बता दें कि यूपी के झांसी में पिछले हफ्ते पुलिस एनकाउंटर में पुष्पेंद्र यादव की मौत हो गई थी। इस मामले में पुष्पेंद्र के परिजनों ने पुलिस पर ख़ुद को बचाने के लिए फेक एनकाउंटर का आरोप लगाया। जिसके बाद विपक्षी नेताओं ने भी पुष्पेंद्र के परिजनों को इंसाफ दिए जाने की मांग की। लेकिन मामले में पुलिस के आरोपी होने के बावजूद किसी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग नहीं की।

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