2015 में पीएम नरेंद्र मोदी ने ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरुआत की थी। लेकिन जैसा कि अक्सर पीएम मोदी और उनकी सरकार करती है। ये योजना ज़मीन पर कम और दिखावे में ज़्यादा रही। ठीक वैसे जैसे उज्ज्वला योजना, नमामि गंगे योजना वग़ैरह।

केंद्रीय महिला और बाल विकास कल्याण राज्यमंत्री वीरेंद्र सिंह ने 4 जनवरी को लोकसभा में जवाब देते हुए बताया कि, इस योजना के तहत आवंटित धन में से 56 फ़ीसदी हिस्सा प्रचार-प्रसार में ख़र्च किया गया। 56 फ़ीसदी का मतलब समझ रहे हैं आप आधे से ज़्यादा।

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जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने ट्वीटर पर पीएम मोदी को घेरते हुए लिखा कि-

बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओका अभियान केवल इश्तेहार बन गया।

अच्छे दिन का देकर झाँसा, चोर ही चौकीदार बन गया।

वाकई जो सरकार किसी योजना की इतनी बड़ी रक़म इश्तिहार पर ख़र्च कर देती है। उसे इश्तिहारी सरकार  ही कहेंगे।

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि 2014-15 और 2018-19 में सरकार इस योजना के लिए 648 कोड़ रूपये आवंटित कर चुकी है जिसमें से 159 करोड़ ही राज्यों-ज़िलों तक पहुँचा है। यानी कुल राशि का 56 फ़ीसदी हिस्सा मोदी सरकार ने अपनी एडवरटाइज़िंग में ख़र्च कर दिया।

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