प्रियंका गांधी के कांग्रेस महासचिव बनने के बाद परेशान बीजेपी ने तुरंत ही कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप लगा दिया।

बीजेपी सही है। यक़ीनन ये वंशवाद है लेकिन ये सवाल उस पार्टी के मुँह से अच्छी नहीं लगती जो सर से पाँव तक वंशवाद तक डूबी हो। चाहे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को ले लीजिए जिनका बेटा जय शाह सक्रिय राजनीति में तो नहीं है लेकिन, बीजेपी सरकार बनने के बाद उसकी सम्पत्ति 16000 गुना बढ़ जाती है।

या पीएम मोदी के सबसे ख़ास अफ़सरशाह अजित डोवाल को ले लीजिए जिनके बेटे शौर्य बीजेपी के नेता हैं।… वरिष्ठ पत्रकार राणा अय्यूब सोशल मीडिया साइट ट्वीटर पर लिखती हैं कि-

सिद्धू ने प्रियंका गांधी की एंट्री का किया स्वागत, कहा- 2019 में राहुल और प्रियंका की जोड़ी BJP का सूपड़ा साफ़ कर देगी

वंशवाद पर सवाल उठाना जायज़ है। लेकिन वो सवाल ऐसी पार्टी उठा रही है जो अपने अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह पर ख़ामोश रहती है और अजित डोवाल के बेटे शौर्य डोवाल पर ख़ामोश रहती है

इसके अलावा शिवराज सिंह चौहान के बेटे, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिंहा के बेटे मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री जयंत सिंहा को ले लीजिए या बीजेपी के सहयोगी रामविलास पासवान को ले लीजिए जिनकी पार्टी लोजपा ने बीजेपी के साथ इस शर्त के साथ समझौता किया है कि वो पासवान के बेटे, बीवी, दो चाचाओं को टिकट देगी और पासवान को राज्यसभा भेजेगी।

और तमाम दूसरे बीजेपी नेताओं को ले लीजिए। आख़िर बीजेपी को सिर्फ़ कांग्रेस का परिवारवाद क्यों दिखता है?

2014 में बीजेपी सत्ता में आती है और उसी साल 2014-15 में अमित शाह के बेटे जय शाह की 50 हज़ार की कम्पनी 2015-16 में 80.5 करोड़ की हो जाती है। लेकिन सब ख़ामोश रहते हैं। कोई ये पड़ताल करने की कोशिश नहीं करता कि एक साल में 50 हज़ार की कम्पनी 80 करोड़ के पार कैसे पहुँच जाती है? बीजेपी को इस पर परिवारवाद नहीं दिखता।

देश ‘हिंदू-मुस्लिम’ में लगा है और डोभाल के ‘बेटे’ सऊदी के मुसलमानों के साथ धंधा कर रहे हैं, वाह मोदीजी वाह : रवीश

नरेंद्र मोदी पीएम बनते हैं और अपने सबसे क़रीबी अफ़्सर के रूप में चुनते हैं अजित डोवाल को, जिनका बेटा राजनीति में एंट्री करता है। लेकिन इससे भी बीजेपी को कोई दिक़्क़त नहीं है। न ही देश की गोदी मीडिया को।

बल्कि इन सबको दिक़्क़त है, सिर्फ़ और सिर्फ़ कांग्रेस, सपा, बसपा, आरजेपी के परिवारवाद से। लोकतंत्र में परिवारवाद घातक है, ख़तरनाक है लेकिन आप एक के परिवारवाद पर बोलेंगे और अपने पर ख़ामोश रहेंगे। लोकतंत्र में ये भी ख़तरनाक है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here