
1984 में हुए सिखों के नरसंहार मामले में आख़िरकार इंसाफ़ हुआ। 17 दिसंबर 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने दंगों के आरोपी कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद सज्जन कुमार को दोषी मानते हुए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है और 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। साथ ही कोर्ट ने सज्जन कुमार से 31 दिसम्बर तक सरेंडर करने के लिए कहा है।
साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या जब उनके ही दो सिख अंगरक्षकों ने कर दी थी जिसके बाद देश में सिख समुदाय के ख़िलाफ़ जगह-जगह दंगे हुए थे।
जिनमें हज़ारों की तादाद में सिखों की दर्दनाक मौत हुई थी, अकेले राजधानी दिल्ली में 3 हज़ार से ज़्यादा सिखों को मौत की घाट उतार दिया गया थी।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से ये साफ हो चुका है कि, 1984 के दंगों में कांग्रेस शामिल थी। इंदिरा की मौत के बाद जब हर तरफ़ ख़ून ही ख़ून था, दिल्ली की सड़के ख़ून से सनी पड़ी थी, उस वक़्त राजीव गांधी ने कहा था कि, ‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है’
इसके अलावा सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर, कमलनाथ समेत दिल्ली के कई स्थानीय नेताओं पर दंगो के दाग़ लगे। जिनमें से आज कोर्ट ने सज्जन कुमार और 3 दूसरे नेताओं को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है।
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लेकिन ये जान लेना भी ज़रूरी है कि सिखों के साथ हुई इस हैवानियत में न सिर्फ़ कांग्रेस नेता शामिल थे बल्कि, तब दर्ज किए गए एफ़आईआर में बीजेपी-संघ के नेताओं के भी नाम शामिल थे।
1984 में हुए दंगों के बाद RSS-BJP के 49 नेताओं के ख़िलाफ़ 14 FIR दिल्ली के अलग-अलग थानों में दर्ज की गई थी (ज़्यादातर FIR श्रीनिवासपुरी थाने में दर्ज की गई).
आरएसएस-बीजेपी के इन नेताओं और कार्यकर्ताओं पर दंगा भड़काने, दंगा करने, डकैती और हत्या की कोशिश के आरोप में मामला दर्ज हुआ था। जो दिल्ली की अलग-अलग अदालतों में अब भी लंबित है।
इन FIR में जो सबसे बड़ा नाम शामिल है वो है राजकुमार जैन। FIR NO.- 446/93 और FIR NO.- 315/92 इन दोनों ही में राजकुमार का नाम है।
राजकुमार बड़ा नाम इसलिए है, क्योंकि ये संघ नेता होने के साथ-साथ हाल ही में चल बसे पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेई का चुनाव एजेंट भी था। (02/02/2002 में छपे हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार में साफ़ देखा जा सकता है)

इसके अलावा एक मीडिया रिपोर्ट की मानें तो लेखक और प्रोफ़ेसर शम्सुल इस्लाम बताते है कि किस तरह संघ के बड़े नेता नानाजी देशमुख ने सिखों के नरसंहार को न्याय के समक्ष सही ठहराया था। शम्सुल की मानें तो नानाजी देशमुख अपने एक दस्तावेज़ में लिखते हैं कि, भीड़ नहीं, बल्कि सिख बुद्धिजीवी नरसंहार के लिए जिम्मेवार हैं।
उन्होंने सिखों को खाड़कू समुदाय बना दिया है और हिन्दू मूल से अलग कर दिया है, इस तरह राष्ट्रवादी भारतीयों से हमले को न्यौता दिया है। यहां फिर वे सभी सिखों को एक ही गिरोह का हिस्सा मानते हैं और हमले को राष्ट्रवादी हिन्दुओं की एक प्रतिक्रिया।
इस तरह दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद कांग्रेस पर हमलावर बीजेपी और संघ के नेताओं को अपने गिरेहबान में झांककर देखने चाहिए कि दंगों के मामले में उनका इतिहास क्या रहा है। यही नहीं आज 1984 मामले में जब दिल्ली हाईकोर्ट फ़ैसला दे रही थी तो उसने गुजरात दंगे (उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम थे) को भी इंसानियत के ख़िलाफ़ बताया।
मुज़फ़्फ़रपुर, ओडिशा, मुम्बई 1993 के दंगों को भी कोर्ट ने इंसानियत के ख़िलाफ़ बताते हुए ये कहा कि उस वक़्त जिनके हाथ में क़ानून की रक्षा करने का जिम्मा था वो मूकदर्शक बने बैठे रहे।
SuFi Sameer