मोदी राज में देश की अर्थव्यवस्था का दिवालिया निकल गया है। जीडीपी विकास दर 6 सालों में सबसे कम 4.5 फीसदी पर आने के बाद अब भारतीय रेल भी बीते 10 सालों में सबसे बुरे दौर में है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि, “भारतीय रेलवे की कमी बीते दस सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। रेलवे का परिचालन अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में 98.44 फीसदी तक पहुंच गया है।

इसका मतलब ये है कि भारतीय रेलवे 98.44 रुपये लगाकर सिर्फ 100 रुपये की कमाई कर रही है। रेलवे को महज एक रुपये 56 पैसे का मुनाफा हो रहा है। ये रेलवे के लिए बहुत बुरी स्थिति है। भारतीय रेलवे की इस खस्ता हाल का सीधा मतलब ये भी हुआ कि रेवले बहुत बड़े अंतर से घाटे में चल रहा है।

CAG रिपोर्ट: रेलवे की कमाई 10 साल में सबसे ख़राब हालत में पहुंची, मोदीराज में सबकुछ चौपट होगा?

भारतीय रेलवे के भयंकर घाटे में जाने के बाद पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने ट्वीट करके कहा कि, “मुझे अभी किसी ने याद किया क्या? बहुत हिचकी आ रही है। मोहब्बत हमारी भी, बहुत असर रखती है, बहुत याद आएंगे, जरा भूल के तो देखो।”

बता दें कि जब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे तब यही भारतीय रेलवे अपने स्वर्णिम काल में थी, यानि लालू के रेल मंत्री रहते रेलवे हजारों करोड़ के मुनाफे में थी। ये इतिहास में पहली बार हुआ था कि रेलवे हजारों करोड़ के मुनाफे में चली गई थी। जब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे तब उन्होंने 2008-09 में रेल बजट पेश किया था। उन्होंने संसद में जानकारी दी थी कि भारतीय रेलवे ने 2007-08 में 25 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया था।

यही नहीं भारतीय रेलवे को बदल कर रख देने वाले लालू प्रसाद यादव के इस मैनेजमेंट की भारत समेत दुनियाभर में पसंद किया गया। बाहर विदेश से छात्र आकर लालू यादव के द्वारा रेलवे को मुनाफे में पहुँचाने की रिसर्च करने लगे थे।

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कैग के ताजा आकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2008-09 में जब लालू यादव रेल मंत्री थे तब रेलवे ने सबसे ज्यादा 90.48 फीसदी, 2009-10 में 95.28 फीसदी, 2010-11 में 94.59 फीसदी, 2011-12 में 94.85 फीसदी, 2012-13 में 90.19 फीसदी, 2013-14 में 93.6 फीसदी, 2015-16 में 90.49 फीसदी, 2016-17 में 96.5 फीसदी और 2017-18 में 98.44 फीसदी पर पहुंच चुका है। लालू के दौर के बाद रेलवे जबरदस्त घाटे में चली गई है।

गौरतलब है कि मोदी सरकार के अभी तक के 6 साल के कार्यकाल में सरकारी कंपनियों का दिवालिया निकल रहा है। मोदी सरकार सरकारी कंपनियों को या तो बेच दे रही है या उन्हें प्राइवेट कंपनियों के हवाले कर दे रही है। बीएसएनएल जैसी सरकारी कंपनी में कर्मचारियों को महीनों से बटन नहीं मिला। इसी की वजह से बेरोजगारी बढ़ रही है, युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही है। अगर मोदी सरकार ने जल्द ठोस उपाय नही किए तो भारत का पीछे जाना तय है।

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