स्वघोषित मेनस्ट्रीम मीडिया बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी के ताजा बयान को विवादित बता रहा है। सवाल उठता है कि ‘विवादित’ क्या है? क्योंकि मीडिया के एक बड़े वर्ग ने ‘विवादित’ शब्द को ही विवादित बना दिया है। फर्क करना मुश्किल हो गया है क्या विवादित है और क्या नहीं। आए दिन खबरों की हेडिंग में विवादित बयान, विवादित बोल, विवादित नारा, विवादित पोस्टर जैसे शब्द पढ़ने को मिलते रहते हैं।

दरअसल विवादित शब्द को मीडिया ‘सर्टिफिकेट’ की तरह इस्तेमाल करने लगी है। मीडिया में ये तय कैसे होता है कि क्या विवादित है, क्या विवादित नहीं है। शायद मीडिया के मुसोलिनीयों को जो बात पसंद नहीं आती उसे ‘विवादित’ लिख देते हैं।

जीतन राम मांझी ने क्या कहा था?

गत रविवार यानी खाली दिन को कुछ खाली लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल किया गया। वीडियो पटना में आयोजित ‘भुइया मिलन समारोह’ का है। यहां लोगों संबोधित करते हुए जीतन राम मांझी कहते हैं, “माफ कीजिएगा, लेकिन आजकल गरीब तबके के लोगों में धर्म के प्रति लगाव होता जा रहा है। पहले हमलोग सत्यनारायण भगवान पूजा का नाम नहीं जानते थे। आज हर जगह हमलोगों के टोला में सत्यनारायण भगवान की पूजा होता है।”

इस दौरान उन्होंने ‘साला’ और पंडितों के लिए ‘हरामी’ शब्द का इस्तेमाल किया। अब वो अपनी इस बात के लिए माफी मांग चुके हैं। लेकिन सवर्णों की बहुलता वाले स्वघोषित मेनस्ट्रीम मीडिया का कहना है जीतन राम मांझी सत्यनारायण की कथा पर सवाल क्यों उठा रहे हैं?

जो धर्म, उसकी कथा और कथावाचक जीतन राम मांझी के समाज को इंसान भी नहीं समझता, क्या वो उस धर्म की कथा पर सवाल भी नहीं उठा सकते?

खैर, जब जीतन राम मांझी अपने बयान के लिए माफी मांग रहे थे तभी एक रिपोर्ट ने उनसे पूछा कि क्या आप पूजा नहीं करते? इस सवाल के जवाब में जीतन राम मांझी ने साफ कहा- ”नहीं, नहीं.. कभी नहीं। इसके पीछे भी कहानी है। जब मैं 7वीं कक्षा में पढ़ता था, उस वक्त श्रावणी पूजा के लिए हमारे साथी मंदिर में गए। जब हम जाने लगे तो मुझे बांह पकड़ के निकाल दिया। उसी टाइम समझे की ‘साले’ देवी देवता हमारे नहीं है। तभी से पूजा करना छोड़ दिया।”

जीतन राम मांझी के इस बायन से सवर्ण बाहुल्य स्वघोषित मेनस्ट्रीम मीडिया और उसके पत्रकार ‘साले’ शब्द को चुनकर अपनी खबर बना रहे हैं। उनका पूरा जोर इस बात बताने में है कि जीतन राम मांझी ने हिन्दू देवी-देवताओं को साला कह दिया।

जबकि जीतन राम मांझी के बयान में सबसे बड़ी खबर ये है कि कैसे आबादी के लिहाज से देश के तीसरे सबसे बड़े राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अपने साथ हुए जातिगत भेदभाव को बता रहे हैं।

बिहार में जातिगत हिंसा और भेदभाव का लम्बा इतिहास रहा है। वहां आज भी दलितों से थूक चटवाने जैसी घटनाएं आम हैं। लेकिन मीडिया को हिन्दू देवी-देवताओं को साले कहना तो विवादित लग रहा है लेकिन जिस हिन्दू जाति व्यवस्था के कारण एक महादलित बच्चे के आत्मसम्मान को कुचल दिया गया वो विवादित नहीं लग रहा है।

जीतन राम मांझी के बयान को उनके सामाजिक इतिहास से जोड़ते हुए वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ले लिखा है, ”बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री माननीय जीतन राम माँझी जी और उनके पुरखों का हिंदू धर्म के साथ अंत:क्रिया यानी Interaction में जो अनुभव रहा है, उसके हिसाब से वे जैसी आलोचना कर रहे हैं, वह बहुत विनम्र है। बग़ैर गाली दिए और अपशब्द बोले उन अनुभवों को दर्ज नहीं किया जा सकता। शुक्र मनाइए कि वे बहुत शालीनता से अपनी अभिव्यक्ति कर रहे हैं।”

अंकित राज

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