सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान बिन सऊद 19 फरवरी को दिल्ली आए। प्रिंस सलमान के लिए पिछले कई दिनों से दिल्ली को सजाया जा रहा था।

मंगवार की रात जब क्राउन प्रिंस दिल्ली पहुंचे तो खुद को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके स्वागत के लिए हवाईअड्डा जा पहुंचे। मीडिया में पीएम मोदी के अंदाज की खुब चर्चा हो रही है।

हेडलाईन भी कुछ इस तरह बनाए जा रहे हैं- ‘भारत दौरे पर आए सऊदी प्रिंस सलमान, प्रोटोकॉल तोड़ स्वागत के लिए पहुंचे पीएम मोदी’

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बात तो सही है प्रधानमंत्री ने प्रोटोकॉल तोड़कर क्राउन प्रिंस का स्वागत किया है। इसे कूटनीतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण भी माना जा रहा है। क्योंकि भारत और सऊदी के बीच 5 बड़े सौदे होने वाले हैं। सऊदी अरब की दो बड़ी तेल कंपनियों में 44 अरब डॉलर का निवेश कर सकती हैं।

लेकिन… लेकिन… लेकिन…

जब प्रधानमंत्री मोदी क्राउन प्रिंस के स्वागत के लिए प्रोटोकॉल तोड़ सकते हैं तो शहीदों के लिए क्यों नहीं? पीएम मोदी जब कूटनीति के लिए, साऊदी से अच्छे रिश्ते के लिए प्रोटोकॉल तोड़ सकते हैं तो देशभक्त जवानों के लिए क्यों नहीं?

पुलवामा अटैक के बाद PM मोदी जिस तरह से ‘हंस’ रहे हैं उससे साबित होता है कि दुख और ग़ुस्सा इनमें क़तई नहीं है : दिलीप मंडल

14 फरवरी को कश्मीर में हुए चरमपंथी हमले में भारत के 44 जवानों की एक साथ मौत हो गई। प्रधानमंत्री मोदी तब प्रोटोकॉल तोड़कर शहीदों के घरवालों से मिलने क्यों नहीं गए? विपक्षी पार्टियों को राष्ट्रवाद और देशभक्ति का पाठ पढ़ाने वाले मोदी क्या खुद सिर्फ विदेशी मेहमानों के लिए प्रोटोकॉल तोड़ सकते हैं?

एक घटना में 44 जवान शहीद हुए, अभी मुठभेड़ में लगातार जवानों की जान जा रही है लेकिन मोदी सिर्फ विदेशी मेहमानों के लिए प्रोटोकॉल तोड़ रहे हैं? ये कैसी देशभक्ति है? क्या अच्छा नहीं होता अगर पीएम मोदी प्रोटोकॉल तोड़कर जवान की अर्थी को कंधा भी दे देते?

काश प्रोटोकॉल तोड़कर किसी जवान की अर्थी को कंधा भी दे देते…

Ankit Lal ಅವರಿಂದ ಈ ದಿನದಂದು ಪೋಸ್ಟ್ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ ಮಂಗಳವಾರ, ಫೆಬ್ರವರಿ 19, 2019

क्या पीएम मोदी के अंदर जवानों की मौत का जरा भी दुख नहीं है? पुलवामा हमले के बाद पीएम मोदी ने जिस तरह एक के बाद एक चुनावी रैलियां की हैं वो उनके दुखी होने पर संदेह पैदा करता है।

पुलवामा के शहीदों की तेरहवीं होने से पहले नरेंद्र मोदी 10 चुनानी रैली, 5 उद्घाटन, दो चुनावी गठबंधन और दो विदेशी अतिथियों का हंस-हंस कर स्वागत कर चुके हैं।

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ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जवानों की शहदात बीजेपी और पीएम मोदी के लिए सिर्फ चुनावी प्रोटीन हैं। क्या बीजेपी को सिर्फ जवानों की शहादत पर जागी जनभावना को वोट में तब्दील करने से मतलब है?

लगता तो यही है! वैसे 18 फरवरी को गुजरात के वडोदरा में बूथ सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रवक्ता भरत पंड्या ने कह भी दिया है कि- ‘पूरा देश राष्ट्रवाद की भावना के साथ एकजुट है। ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस एकता को वोट में बदलें।’  

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