सरकार ने शुक्रवार को नौ पेशेवरों का चयन किया है. ये सभी प्राइवेट सेक्टर से ताल्लुकात रखते हैं व सरकार को नई नीतियों के निर्माण में सहयोग देंगे. ये पहली बार हुआ है जब लेटरल-एंट्री के प्रोसेस से जॉइंट-सेक्रेटरी पद पर सीधा चयन किया गया है.
इससे पूर्व इस पद पर अफसरों की भर्ती यूपीएससी की परीक्षा में सफल छात्रों में से की जाती थी. चयनित नौ पेशेवरों को ‘कॉन्ट्रैक्ट’ बेसिस पर रखा जा रहा है. ये एक बहुत बड़ा बदलाव है जहां सभी चयनित पेशेवर प्राइवेट सेक्टर से हैं.
चयनित सभी पेशेवरों में कोई भी एससी-एसटी, ओबीसी, या पिछड़े वर्ग से नहीं है. चुने गए नौ नामों में 5 लोग ब्राह्मण हैं. वहीं बचे हुए चार लोग राजपूत, बनिया, कायस्थ और भूमिहर हैं. पत्रकार और लेखक दिलीप मंडल ने इसपर अपनी चिंता जताई है. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि 85 प्रतिशत एससीएसटी, ओबीसी जाकर जय श्री राम जपें. कहने का मतलब सवर्ण तुष्टीकरण में सरकार तमाम हदें पार करती जा रही है.
9 Joint Secretary posts directly filled by Govt of India.
5 Brahmins, 1 Rajput, 1 Baniya, 1 Kayasth, 1 Bhumihar…All High Castes from 15% of Indian population.
85% SC, ST, OBC can go and chant Jai Shree Ram!
— Dilip Mandal (@dilipmandal) April 16, 2019
बता दे संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा चुने गए सिविल सेवा उम्मीदवारों की संख्या 2014 के बाद से लगभग 40 प्रतिशत गिर गई है. यानी केंद्र सरकार के पास नौकरशाह की कमी है. हालांकि यूपीएससी केवल उन खाली पदों के लिए परीक्षा कराता है, जिसकी जानकारी सरकार देती है.
यूपीएससी अधिकारी ने बताया कि, ‘भर्तियों की संख्या में यूपीएससी का कोई हाथ नहीं है. हम बस सरकार की जरूरत के अनुसार परीक्षा और शार्टलिस्ट का आयोजन करते हैं.’ ये देखा गया है की शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों की संख्या हमेशा सरकार द्वारा जारी रिक्तियों से कम होती है.
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जैसे कि 2018 में सरकार द्वारा जारी रिक्तियों की संख्या 812 थी, जिसके खिलाफ यूपीएससी ने 759 उम्मीदवारों की भर्ती की थी. हो सकता है मोदी सरकार नौकरशाही को कमज़ोर करना चाहती है और सिस्टम में अपने लोगों को ही उच्च पदों पर बैठाकर अपने कम निकलवाने की फिराक में है. ये भी हो सकता है की जानकर सरकारी पद खाली छोड़े जाते है ताकि बाद में उसपर मोदी सरकार अनारक्षित वर्ग को फायदा दिला सके.
ऐसा पहली बार भी नहीं हो रहा जब सरकार ने शिक्षा और प्रशासनिक व्यवस्था में निजी लोगों को फायदा पहुंचना चाहा हो. वर्ष 2000 में जब बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सत्ता में थी तब अम्बानी-बिरला रिपोर्ट सामने आई. ये रिपोर्ट देश में उच्च शिक्षा पर आधारित थी जिसके कन्वेनर मुकेश अम्बानी और सदस्य कुमारमंगलम बिरला थे.
इस रिपोर्ट में सरकार को उच्च शिक्षा में निजीकरण को बढ़ावा देने का प्रस्ताव दिया गया था. अटल बिहारी वाजपई की सरकार के पास तब भी विशेषज्ञों की कमी रही होगी. तभी अम्बानी- बिरला जैसे नाम्ची कारोबारियों का चुनाव में लिया पैसा लौटाने के लिए देश की शिक्षा को नीलाम कर दिया गया था.
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जॉइंट-सेक्रेटरी के पद पर सीधा चुने गए नौ नाम हैं- अम्बर दुबे, सुजीत कुमार बाजपाई, दिनेश दयाननद जगदाले, काकोली घोष, सौरभ मिश्रा, राजीव सक्सेना, अरुण गोयल, सुमन प्रसाद सिंह और भूषण कुमार.
बता दें कि सुजीत बाजपाई अभिनेता मनोज बाजपाई के छोटे भाई हैं. उनकी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में जॉइंट सेक्रटरी के रूप में नियुक्ति हुई है.
यूपीएससी उम्मीदवार रात-दिन एक कर पढाई करते हैं. गरीब परिवार से आए छात्र लोन लेकर पढ़ते हैं. लेकिन सुजीत बाजपाई जैसे नाम बिना सिविल सर्विस परीक्षा पास किए सीधा भारत सरकार में ज्वायंट सेक्रेटरी बना दिए गए जिन्हे प्रशासनिक अनुभव तक नहीं है.