100 से ज़्यादा अर्थशास्त्रियों और सामाजिक वैज्ञानिकों ने मोदी सरकार पर दखलअंदाज़ी का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सरकार देश में आंकड़े एकजुट करने वाली एजेंसियों के काम में दखल दे रही है जिसके कारण उनका नाम खराब हो रहा है। चुनाव से बस कुछ ही हफ्ते पहले गुरुवार को देश-विदेश के नामी 108 शिक्षाविदों ने इस लेटर पर हस्ताक्षर किए हैं।

मोदी सरकार पर आंकड़ों को छिपाने या फिर उनके साथ फेर-बदल करने का आरोप विपक्ष लगाता आ रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बीजेपी पर जॉब का डेटा दबाने और अर्थव्यवस्था को पिछली सरकारों से बेहतर प्रदर्शित करने के लिए आर्थिक विकास के आंकड़ों में कथित रूप से हेरफेर करने की बात कही थी।

शिक्षाविदों के बयान में कहा गया है कि आर्थिक आंकड़े नीति-निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह ज़रूरी है कि डेटा के संग्रह और प्रसार से जुडी एजेंसियों को राजनीतिक दखलंदाज़ी से अलग रखा जाए ताकि विश्वसनीयता बनी रहे।

नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कान्त ने ऐसे किसी भी आरोप को नकारा किया है। उन्होंने कहा है कि, ‘जॉब डेटा की हैंडलिंग में किसी भी प्रकार से राजनीतिक दखलंदाज़ी का सवाल ही पैदा नहीं होता।’

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देश के प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रोहित आज़ाद ने स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर किया है। उन्होंने कहा है कि डेटा को ‘अकादमिक स्पिरिट’ में लिया जाना चाहिए ना की हमला करने के लिए। ‘चुनाव किसी के पक्ष में हो, शिक्षा से जुड़े आंकड़ों के साथ गड़बड़ सहन नहीं की जा सकती। अगर आंकड़ों से आपकी सरकार की नामकामियों का पता चलता है तो उन्हें दबाना नहीं चाहिए’ रोहित ने आगे बताया कि पिछले 50 सालों में बेरोज़गारी अपने सबसे ऊँचे स्तर पर है।

जेएनयू में प्रोफेसर जयति घोष ने कहा कि, ‘सरकार ने चुनाव के समय तमाम वादें किए थे जो शायद पूरे नहीं हुए हैं। चाहे वो जीडीपी डेटा हो या रोज़गार पर डेटा हो, सरकार जो दिखाना नहीं चाहती वो डेटा छिपा दिया जाता है। कह दिया जाता है कि सर्वे ठीक ढंग से नहीं किया गया है।’

इस लेटर में लिखा है कि सरकार की उपल्बधियों पर संदेह करने वाली किसी भी सांख्यिकी गणना के तरीके पर सवाल उठाकर उन्हें दबाने की कोशिश की जाती है। नोटबंदी के दौरान सरकार ने ये कहकर अपने ऊपर आए सभी सवालों से पीछा छुड़ा लिया था कि उनके पास आंकड़े नहीं हैं।

हाल फिलहाल में मंत्रालय से रफाएल सौदे की फाइलें चोरी हो गईं। भारतीय सांख्यिकी संस्थाओं का राजनीतिक फायदों के लिए इस्तेमाल होने से उनकी छवि को संदेह से देखा जा रहा है। जनवरी माह में नेशनल स्टैटिस्टिकल कमीशन के एक्टिंग चेयरमैन पीसी मोहनन और सदस्य जेवी मिनाक्षी ने इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने यह कहकर इस्तीफ़ा दिया कि बेरोज़गारी को लेकर सरकार एनएसएसओ के आंकड़े जारी नहीं कर रही।

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108 अर्थशास्त्रियों और सामाजिक वैज्ञानिकों की सूची में पी सी मोहनन का नाम में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि, ‘हाल के घटनाक्रमों के मद्देनज़र इन सभी प्रमुख लोगों की तरफ से दर्ज कराई गई आपत्ति बहुत ही सामयिक और प्रासंगिक है। यह महत्त्वपूर्ण है कि राजनीतिक दल इसे गंभीरता से लें’

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