प्रधानमंत्री मोदी ने 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज का एलान किया, टीवी और अखबार समेत पूरी मीडिया ने उसको मास्टरस्ट्रोक बताया गया। सरकार के इस फैसले पर खूब “तालियां” भी बजी। ऐसा प्रोजेक्ट किया गया कि सरकार इतनी बड़ी राशि कोरोना के कारण देश पर आए आर्थिक संकट से बचाने के लिए लगा रही है, जनता के लिए लगा रही है।

लेकिन सच तो ये है कि मोदी सरकार जनता को राहत पहुँचाने के लिए 20 लाख करोड़ नहीं बल्कि केवल 1.5 लाख करोड़ खुदसे खर्च करेगी। जीडीपी का 10 प्रतिशत नहीं बल्कि 0.75 प्रतिशत खुदसे खर्च करेगी।

आखिर इतने बड़े दावों से सबको भ्रम में क्यों रखा गया? अगर सरकार की बैलेंस शीट पर केवल 1.5 लाख करोड़ का खर्च पड़ेगा, तो बाकि का 18.5 लाख करोड़ कहाँ से आएगा?

ब्रिटिश ब्रोकरेज फर्म बार्कलेज रिसर्च ने इस पुरे डाटा का हिसाब लगाकर अपनी रिपोर्ट में सच बताया है। बार्कलेज ने राहत पैकेज के अलग-अलग सोर्सेज को जोड़कर ये भी बताया है कि भारत में राहत के काम के लिए कुल 21 लाख करोड़ का खर्च होगा, 20 लाख करोड़ नहीं।

उनके मुताबिक भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने ऐसे तमाम फैसले लिए हैं जिससे लिक्विडिटी बढ़ेगी और उससे मार्किट में 8 लाख करोड़ रूपए आने का अनुमान है। इसके अलावा लगभग 11.5 लाख करोड़ वित्तीय पैकेज के ज़रिए खर्च किया जाएगा। ये लोन बैंक देंगे, सरकार केवल ऐसा करने के लिए कहेगी। बचा हुआ 1.5 लाख करोड़ सरकार खर्च करेगी जो राजकोषीय पैकेज में आते हैं जिसका इस्तेमाल मनरेगा जैसी योजनाओं में होगा।

इसके अलावा सरकार अपने ‘आत्मनिर्भर अभियान’ में अंबानी, अडानी, टाटा पावर, जेएसडब्ल्यू स्टील और वेदांता जैसे उद्योपतियों को ज़बरदस्त फायदा पहुंचाने वाली है. एयरपोर्टों की नीलामी से लेकर कॉल कंपनियों का निजीकरण कर रही है।

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