भारतीय रेलवे के कुछ हिस्सों, एयर इंडिया और भारत पेट्रोलियम को बेचने के बाद अब केंद्र की मोदी सरकार ज़िला सरकारी अस्पतालों को भी निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में जुट गई है। केंद्र की प्रमुख थिंक टैंक नीति आयोग ने पीपीपी मॉडल के तहत निजी मेडिकल कॉलेज से जिला अस्पतालों को जोड़ने की योजना’ को लेकर 250 पन्नों का दस्तावेज जारी किया है।
खबरों के मुताबिक, अगर सरकार की ये योजना लागू हो जाती है तो निजी व्यक्ति या संस्थान मेडिकल कॉलेज की स्थापना और उसे चलाने के लिए भी जिम्मेदार होंगे। इसके अलावा इन मेडिकल कॉलेजों से सेकेंडरी हेल्थकेयर सेंटर को जोड़ा जा सकेगा और ये सेंटर भी निजी हाथों से नियंत्रित होंगे।
नीति आयोग ने इस योजना को लेकर जो दस्तावेज जारी किए हैं, उसमें योजना में दिलचस्पी रखने वाले लोगों से प्रतिक्रिया मांगी गई है। बताया जा रहा है कि जनवरी के अंत तक इस योजना में हिस्सा लेने वालों की एक बैठक की तारीख तय की गई है।
इस योजना में कहा गया है कि, जिला अस्पतालों में कम से कम 750 बेड होने चाहिए। इसमें लगभग आधे “मार्केट बेड” और बाकी “रेग्यूलेटेड बेड” के रूप में होंगे। मार्केट बेड की कीमत बाजार के आधार पर होगी। इसी की बदौलत रेग्यूलेटेड बेड पर छूट दी जा सकेगी।
इस योजना को लागू करने के पीछे की वजह बताई है कि केंद्र और राज्य की सरकार अपने सीमित संसाधन और सीमित खर्च की वजह से चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में अंतर को खत्म नहीं कर सकते हैं। ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने और चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई की लागत को तर्कसंगत बनाने के लिए यह फैसला ज़रुरी है।
हालांकि जेएसए और एसोसिएशन ऑफ डॉक्टर्स फॉर एथिकल हेल्थकेयर ने इस योजना का विरोध किया है। इन लोगों ने इस योजना के खिलाफ सरकार को पत्र लिखने का भी फैसला किया है।
जन स्वास्थ्य अभियान के नेशनल को-कनवेनर डॉ अभय शुक्ला ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “इस नीति को लागू करने के बाद स्वास्थ्य सेवा और उसकी गुणवत्ता से समझौता करना पड़ेगा। इसका सबसे ज्यादा असर गरीबों पर पड़ेगा। हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में निवेश की जरुरत है। किसी का यह कहना कि हमारे पास संसाधन की कमी हैं, यह एक हास्यास्पद तर्क है क्योंकि हमारा स्वास्थ्य सेवा खर्च दुनिया में सबसे कम है।”