
RBI के मिनट्स ऑफ मीटिंग से हुआ खुलासा. RBI ने नोटबंदी से कालेधन निकालने का सरकारी दावों को ठुकरा दिया था. नोटबंदी के बाद से ही सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले में कौन-कौन लोग शामिल थे इसपर 2 सालों से विवाद है।
इतने बड़े फैसले में सरकार और रिजर्व बैंक की क्या भूमिका रही इसे लेकर भी स्थिति नोटबंदी के दो साल बाद भी स्पष्ट नहीं हो पाई है। लेकिन अब आरबीआई के मिनट्स ऑफ मीटिंग के आने के बाद नोटबंदी पर आरबीआई का रुख साफ हुआ है।
‘मिनट्स ऑफ मीटिंग’ के आनुसार आरबीआई ने नोटबंदी से कालेधन और नकली नोटों पर सरकार के तर्कों को ठुकरा दिया था। साथ ही सरकार द्वारा लिए जा रहे इस फैसले से देश की जीडीपी पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को लेकर भी आरबीआई ने चिंता जताई थी।
साथ ही साथ नकली करेंसी को लेकर सरकार की ओर से वित्त मंत्रालय ने बोर्ड को सूचित किया था कि 1,000 और 500 रुपये में इस तरह के नकली नोटों की कुल मात्रा 400 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
मोदी सरकार RBI से पैसा लेना चाहती है ताकि 2019 के चुनाव में रेवडी बांट सकेः कांग्रेस
अपने तर्क में आरबीआई बोर्ड ने कहा कि जाली नोट की कोई भी घटना देश के लिए चिंता का विषय है लेकिन परिचालन में कुल मुद्रा के प्रतिशत के रूप में 400 करोड़ रुपये बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। मिनट्स ऑफ मीटिंग में वित्त मंत्रालय द्वारा दिए गए सुझावों की लिस्ट दी गई है।
कालेधन पर मंत्रालय ने व्हाइट पेपर में दर्ज बातें आरबीआई के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सामने रखीं, जिसे बोर्ड ने मिनट्स में यूं दर्ज किया है- “अधिकांश काले धन नकद के रूप में नहीं बल्कि वास्तविक क्षेत्र की संपत्ति जैसे सोने या रीयल-एस्टेट के रूप में होता है और इस कदम पर उन संपत्तियों पर कोई भौतिक प्रभाव नहीं पड़ता है।”
मोदी सरकार को रघुराम राजन की नसीहत, बोले- RBI की आजादी पर हमला करना बंद करो
लेकिन अब सवाल यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरबीआई के इन तर्कों को अपने टी.वी टेलिकास्ट में बिलकुल ही नज़रआंदज किया था और नोटबंदी को कालेधन और नकली करेंसी के खिलाफ उठाया गया कदम बताया था।
आपको बता दें कि आरबीआई की बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की 561वीं बैठक नोटबंदी के दिन यानी 8 नवंबर, 2016 को शाम 5.30 बजे जल्दबाजी में नई दिल्ली में आयोजित की गई थी। यह जानकारियां इसी मीटिंग की ही हैं जो पहली बार ही सामने आई हैं।