भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर की चपेट में शहर के साथ-साथ अब ग्रामीण क्षेत्र भी आ रहे हैं। अबकी बार ये बीमारी और भी ज़्यादा घातक साबित हो रही है।

पिछले साल के मुकाबले इस साल पिछड़े क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण और उससे होने वाली मौतों के मामले चार गुना ज़्यादा दर्ज हुए हैं।

‘बैकवर्ड रीजन ग्रांट फण्ड (BRGF)’, जो की भारत सरकार के पंचायती राज सिस्टम को मज़बूत करने का एक प्रोग्राम है, उसकी रिपोर्ट में कुछ हैरान कर देने वाले तथ्य सामने आए हैं।

इसने 272 जिलों पर अपनी रिसर्च की है जिनमें से 243 जिलों का डाटा उपलब्ध है। BRGF के अनुसार इन जिलों में 39.16 लाख लोग 5 मई तक कोरोना संक्रमित थे।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, ये आंकड़ा पिछले साल के 16 सितम्बर के आंकड़ें से चार गुना है। तब कोरोना संक्रमण के रिकॉर्डतोड़ 9.5 लाख मामले दर्ज हुए थे।

ये वही समय था जब भारत में कोरोना की पहली लहर अपने पीक पर थी। कोरोना की दूसरी लहर का अभी पीक आया भी नहीं है, और हालात इतने बुरे हो चले हैं।

भारत के ये इलाके पिछड़े हैं, अस्पतालों की सुविधाओं से वंचित है, केंद्र और राज्य सरकारें इनपर ध्यान भी नहीं दे रही हैं। इसका नतीजा होता है – बीमारी और मौत।

BRGF ने अपनी रिसर्च में पाया है कि पांच मई तक 243 पिछड़े जिलों में कोरोना के कारण 36,523 मौतें हो गई थी।

ये आंकड़ा भी पिछले साल की पीक के मुकाबले लगभग चार गुना है। ध्यान देने वाली बात है कि ये रिसर्च ज़्यादातर बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखण्ड के जिलों में की गई है।

हालात इतने बुरे हो गए हैं कि गांवों में एक साथ दर्जनों लोगों की मौत हो जा रही है। उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों के बाद स्थिति और भी ज़्यादा गंभीर हो चली है।

मीडिया में ग्रामीण इलाकों में कोरोना महामारी के प्रकोप की खबरें भरी पड़ी हैं। कानपुर पास स्थित परास गांव में कोरोना की वजह से एक हफ्ते के भीतर लगभग 35 लोगों की मौत हो गई थी। उत्तर प्रदेश के संभल में दो नव निर्वाचित ग्राम प्रधानों की कोरोना के कारण मौत हो गई है।

शहरों के अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी की वजह से लोग अपने परिजनों को नहीं बचा पा रहे हैं। हर रोज आ रही खबरों के बाद गांवों और पिछड़े इलाकों के हालात तो समझे ही जा सकते हैं।

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