मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद एक आरोप उसपर लगातार लगता रहा है कि इस सरकार के कार्यकाल में बेरोज़गारी लगातार बढ़ रही है। वर्तमान वर्ष में भी सरकार की नाकामी का ये रिकॉर्ड कायम रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्री सड़क से संसद तक अपनी सरकार के प्रदर्शन पर अपने भाषणों में ख्याली पुलाव पका रहे हैं और पकोड़े खिला रहे हैं लेकिन ज़मीन पर हालात बाद से बदतर होते जा रहे हैं।
वर्ष, 2018 ख़त्म होने की कगार पर है लेकिन बेरोज़गारी इस साल भी घटने के बजाए बढ़ी है। सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) की रपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2018 में औसतन बेरोज़गारी लगभग 50% बढ़ गई है।
रिपोर्ट के आकड़े बताते हैं कि जनवरी 2018 में बेरोज़गारी दर 5.1% थी जो लगातार बढ़ते हुए दिसम्बर 2018 में 7.3% पर पहुँच गई है। वहीं, अगर इस रिपोर्ट का अध्ययन किया जाए तो सामने आता है कि बेरोज़गारी सबसे ज़्यादा इस देश के युवाओं के बीच बढ़ रही है।
आंकड़ें बताते हैं कि अगस्त 2018 में 20 से 24 वर्ष के युवाओं के बीच बेरोज़गारी दर 32% थी। वहीं, महिलाओं के बीच ये दर 22% थी। अब जब औसतन दर ही वर्ष के अंत तक 50% बढ़कर 5.1% से 7.3% हो गई है तो युवाओं और महिलाओं के बीच बेरोज़गारी ना बढ़ने का कोई और कारण नहीं नज़र आता है।
ये सब तब हो रहा है जब नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था। हालात ये हैं कि सरकार अभी तक पाँच साल में 2 करोड़ नौकरियां पैदा नहीं कर पाई है।
हाँ, नोटबंदी और जीएसटी से जो उद्योग बर्बाद हुए उनमें बेरोजगार हुए लोगों की संख्यां ज़रूर दो करोड़ के आंकड़ें के पास हो सकती है। ऑल इंडिया मेन्युफेक्चरिंग आर्गेनाईजेशन (एआईएमओ) के सर्वे के मुताबिक, जीएसटी से केवल छोटे और मध्यम उद्योगों में 35 लाख लोग बेरोजगार हुए हैं अगर इसमें बड़े उद्योग और असंगठित क्षेत्र में बेरोज़गार हुए लोगों के आंकडें जोड़ दिए जाए तो संख्या 2 करोड़ पहुँच सकती है।