इस साल तीन लोगों को सर्वोच्च नागरिकता सम्मान ‘भारत रत्न’ मिलने वाला है। पहला नाम पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का है। कांग्रेस के अग्रिम कतार के नेताओं में गिने जाने वाले प्रणव मुखर्जी पिछले साल आरएसएस के कार्यक्रम में जाने को लेकर भी सुर्खियों में रहे।

दूसरा नाम है दिवंगत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनसंघ के नेता नानाजी देशमुख का। अटल विहारी वाजपेयी की सरकार में इन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था, मोदी सरकार में भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है।

तीसरा नाम है बिरले कलाकार भूपेन हजारिका का। गीत-संगीत की दुनिया में इनका बड़ा नाम है। असम का निवासी होने के कारण भूपेन असमिया संस्कृति और संगीत से भी जुड़े रहे।

इन तीनों नामों की घोषणा हुई थी 25 जनवरी को। और उसी दिन से मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए जा रहे हैं। भारत रत्न की घोषणा होने के तुरंत बाद बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार संजय यादव ने ट्वीट किया कि ‘भारत रत्न का नाम बदलकर ‘जनेऊ रत्न’ कर देना चाहिए।’

लोहिया, कांशीराम और कर्पूरी ठाकुर जैसे बहुजन नायकों को अभी तक क्यों नहीं मिला भारत रत्न ?

ऐसा उन्होंने शायद इसलिए कहा क्योंकि अब तक जितने लोगों को ‘भारत रत्न’ मिला है, उसमे सबसे अधिक ब्राह्मण ही हैं। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने भी इस ओर इशारा करते हुए लिखा है कि ‘नरेंद्र मोदी ने अपने शासनकाल में सात लोगों को भारत रत्न दिए जिनमें से छह ब्राह्मण हैं। जिन लोगों को अब तक भारत रत्न नहीं मिला, उनमें ज्योतिबा फुले, सावत्रीबाई फुले, जयपाल सिंह मुंडा, ध्यानचंद कुशवाहा, चौधरी चरण सिंह, कर्पूरी ठाकुर, दशरथ माँझी, मान्यवर कांशीराम प्रमुख हैं।’

सोशल मीडिया पर एक लिस्ट भी वायरल हो रही है जिसमें साल 1954 से लेकर साल 2019 तक के भारत रत्न से सम्मानित शख़्सियतों का नाम लिखते हुए उनकी जाति और धर्म का ज़िक्र किया गया है। ये लिस्ट बताती है कि, भारत में अब तक कुल 48 लोगों को यह सम्मान दिया गया जिनमें 23 ब्राह्मण है। यानी भारत रत्न पाने वालों में 48 फ़ीसदी ब्राह्मण हैं।

उधर तेजस्वी यादव यादव सरीखे अन्य समाजवादी धरा के नेता बहुजनों को भारत रत्न से वंचित रखने को लेकर सवाल उठा रहे हैं। तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया है ‘भारत रत्न पुरस्कार विजेताओं को बधाई।

श्री राम मनोहर लोहिया
जननायक कर्पूरी ठाकुर
मान्यवर कांशीराम जी को भारत रत्न अवश्य ही मिलना चाहिए। वंचित, उपेक्षित समाज के उत्थान में उनके योगदान को कोई नहीं नकार सकता। किसी महापुरुष की विचारधारा, धर्म, जाति और वर्ग इसमें आड़े नहीं आना चाहिए।’

इसे लेकर राजद ने भी एक ट्वीट किया है। राजद ने लिखा है ‘भाजपा के नानाजी देशमुख को भारत रत्न मिल जाता है, पर ज्योतिबा फुले, सावत्रीबाई फुले, ध्यानचंद कुशवाहा, कर्पूरी ठाकुर, राम मनोहर लोहिया, मान्यवर कांशीराम को नहीं! क्यों? क्या यह देश बहुजनों का नहीं?’

RSS के चहेतों को मिला भारत रत्न, संजय बोले- ‘भारत रत्न’ का नाम अब ‘जनेऊ रत्न’ कर देना चाहिए

ये मांग और सवाल वाजिब भी हैं। आखिर क्या वजह है कि लोहिया, कर्पूरी ठाकुर और कांशीराम जैसे दलितों-पिछड़ों की अगुवाई करने वाले नेताओं को अब तक भारत रत्न से वंचित रखा गया है? क्या भारत सरकार ज्योतिबा फुले, सावत्रीबाई फुले के योगदान को भारत रत्न लायक नहीं समझती?

सामाजिक न्याय के आरंभिक पक्षधरों में से एक, संविधान सभा के सदस्य और हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा ने भारत के आदिवासियों के प्रतिनिधित्व की जो लड़ाई लड़ी क्या सरकार उसे भी भारत रत्न योग्य नहीं मानती? ये सवाल सिर्फ मोदी सरकार से नहीं पिछली सरकारों से भी है। दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले इन नेताओं को क्या इनकी जाति की वजह से भारत रत्न से वंचित रखा गया है?

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