चुनाव आयोग पर उठ रहे ‘प्रश्नचिन्ह’ पर अब खुद चुनाव आयोग के ही सबसे वरिष्ठतम अधिकारी अशोक लवासा खिलाफ हो गए हैं। पीएम मोदी को विवादित बयानों के लिए आयोग द्वारा क्लीन चिट दिए जाने पर लवासा चुनाव आयोग से असहमत हैं।

अशोक लवासा ने चुनाव आयोग की मीटिंग में शामिल होने से साफ़ माना कर दिया है। लवासा ने यह फैसला उनकी बात नहीं मानने के विरोध में किया है। लवासा ने एक पत्र में कहा कि, “मीटिंग में जाने का कोई मतलब नहीं है, इसीलिए दूसरे उपायों पर विचार कर सकता हूं।”

बता दें कि पीएम नरेन्द्र मोदी ने इस चुनाव में कई बार विवादित बयान दिए इसको लेकर अशोक लवासा मोदी के खिलाफ थे। लेकिन चुनाव आयोग मोदी के पक्ष में खड़ा रहा और आयोग ने पीएम मोदी पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसीलिए पीएम मोदी के विवादित बयानों के मामले में आयोग द्वारा क्लीन चिट दिए जाने पर लवासा के ‘फैसले को रिकॉर्ड’ नहीं किया गया।

चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के खड़े हो जाने से अब चुनाव आयोग VS चुनाव आयोग हो गया है। चुनाव आयोग और अशोक लवासा आमने-सामने आ गए हैं। यानि मोदी सरकार में एक और संस्था में भूचाल मच गया है।

इस मामले पर पत्रकार रोहिणी सिंह ने प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट कर कहा है कि, “चलिए एक और संस्था बर्बाद हो गई। 70 साल में पहली बार का एक और अचीवमेंट।”

मोदी सरकार में सीबीआई VS सीबीआई, सीबीआई VS पुलिस, जज VS जज के बाद अब चुनाव आयोग VS चुनाव आयोग आमने सामने आ गए हैं। विपक्ष भी मोदी सरकार पर आरोप लगाता रहा है कि इस सरकार ने सरकारी संस्थाओं को बर्बाद कर दिया है।

अशोक लवासा ने चुनाव आयोग पर संगीन आरोप लगाते हुए 4 मई को ही पत्र लिख दावा किया था कि, “जब से अल्पमत को रिकॉर्ड नहीं किया गया तब से लेकर मुझे कमीशन की मीटिंग से दूर रहने के लिए दबाव बनाया गया। लवासा ने मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखकर कहा था, “जब से मेरे अल्पमत को रिकॉर्ड नहीं किया गया तब से कमीशन में हुए विचार-विमर्श में मेरी भागीदारी का अब कोई मतलब नहीं है।”

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