Samar Raj

2022 का विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, ऐसे में चुनावी हलचल सिर्फ उत्तर प्रदेश में नहीं पंजाब में भी बढ़ने लगी है। जहां पिछले 4 साल से कैप्टन अमरिंदर निर्विवाद रूप से सरकार चला रहे थे, वहां अचानक से पिछले 1 महीने में टूट-फूट की तमाम खबरें आने लगी।

कैप्टन और सिद्धू के बीच मनमुटाव तो पहले से जगजाहिर थी मगर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने जब 25 विधायकों को दिल्ली बुलाकर अलग से बैठकें की तो इस बात पर मुहर लगी कि पंजाब सरकार में सब कुछ ठीक नहीं है, ठीक उसी तरह जैसे उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के अंदर बेचैनी है।

इसी मौके का फायदा उठाते हुए तेजी से सक्रिय हुए विपक्ष ने चुनावी दांव खेलने शुरू कर दिए हैं। लंबे समय से बसपा से गठबंधन करने की इच्छुक अकाली दल ने बातचीत को गति दी और अब बसपा प्रमुख मायावती से हामी भरवा लिया।

बसपा और अकाली के गठबंधन की आधिकारिक घोषणा करने के लिए अकाली दल की तरफ से सुखबीर सिंह बादल और उनके तमाम सहयोगी नेता और बसपा की तरफ से प्रदेश अध्यक्ष जसबीर सिंह गढ़ी और राष्ट्रीय महासचिव सतीश मिश्रा मौजूद रहे।

घोषणा के अनुसार आगामी चुनाव में अकाली दल 97 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो बसपा 20 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी।

आजादी के पहले से हो रहे प्रांतीय चुनावों से लेकर आज तक के चुनाव में जो अकाली दल पंजाब में सबसे मजबूत रही है, उसने अगर बसपा से गठबंधन किया है तो उसके पीछे राजनैतिक गुणा गणित है। पंजाब में दलितों की आबादी 30% से ज्यादा है इसलिए दलित वोटों को रिझाने के लिए तमाम दल वहां अलग-अलग पोस्ट ऑफर करते रहते हैं।

क्योंकि बहुजन समाज पार्टी देशभर में दलितों के बीच सबसे लोकप्रिय पार्टी है और इसके संस्थापक कांशीराम की जन्मस्थली भी पंजाब है तो बसपा से गठबंधन करके दलितों के वोटों को एकमुश्त खींचने की तैयारी की जा रही है।

बसपा सुप्रीमो मायावती भी आज के हालातों से परिचित हैं कि अलग से चुनाव लड़ने पर उन्हें दलितों का एकतरफा समर्थन नहीं मिलेगा मगर पंजाब के अंदर पहले से एक मजबूत जनाधार की पार्टी के साथ खड़े होने पर उन्हें मनचाही जीत मिल सकती है। ये आंकलन इस आधार पर भी लगाए जा सकते हैं कि 1996 में लोकसभा चुनाव के लिए बसपा ने अकाली दल के साथ गठबंधन किया था और 3 लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही थी।

आंकड़े बताते हैं कि अगर 2019 में भी ऐसा किया गया होता तब भी बसपा कम से कम 3 लोकसभा सीटें जीत सकती थी। क्योंकि सभी बड़े दलों से अलग होकर एक नए फ्रंट से चुनाव लड़ने पर भी बसपा को औसतन हर सीट पर डेढ़ लाख से ज्यादा वोट मिले।
जो इस राज्य में कांग्रेस और अकाली+ के बाद किसी दल का बेहतरीन प्रदर्शन था।

गौरतलब है कि नए कृषि कानूनों की वजह से अकाली दल ने भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया है और हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है। इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी को पंजाब की राजनीति से लगभग विलुप्त कर दिया गया है।

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