जेएनयू के छात्रों ने पिछले दो हफ़्तों से फ़ीस-बढ़ोतरी और कर्फ्यू टाइमिंग के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। छात्रों की लड़ाई अब कैंपस से निकलकर सड़कों पर आ गई है। जहाँ एक तरफ कुछ लोग JNU के छात्रों के साथ सरकार की शिक्षा नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं वहीँ दूसरी तरफ कुछ लोग जेएनयू को बंद करने की मांग कर रहे हैं।

छात्रों की एक अहम मांग है कि प्रशासन उनकी फ़ीस में बढ़ोतरी न करे। लेकिन उपराष्ट्रपति और HRD मंत्री के सामने विरोध-प्रदर्शन के बाद प्रशासन की तरफ से छात्रों के लिए हाल ही में एक नोटिस आया है।

उसमें लिखा है कि, छात्रावास में रह रहे सभी निवासियों को अपना बकाया मेस का बिल 14-11-2019 तक भरना है। अगर वो ऐसा करने में नाकाम रहते हैं तो उसी दिन उनको दिया जा रहा खाना बिना नोटिस के बंद कर दिया जाएगा।”

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इसी पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रशांत कनौजिया ने ट्वीट किया, छात्रों के आंदोलन को तोड़ने के लिए खाना बंद करने की धमकी। हिटलर भी यह देखकर बोलता ये तो मुझसे भी ज़्यादा गिरे हुए लोग हैं।#jnuprotest”

जिन पत्रकारों का काम था सत्ता से सवाल पूछना वो खुद ही सत्ताधारियों का पक्ष ले रहे हैं। जिन पत्रकारों का काम था छात्र-छात्राओं की आवाज बनना वो छात्र छात्राओं पर तंज कस रहे हैं, साथ ही तमाम प्रोपेगंडा चला रहे हैं। ऐसे में इस सरकार से सवाल कौन पूछेगा?

जाहिर सी बात है विश्वविद्यालयों के छात्र छात्राओं को ही सामने आना होगा और सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म को जरिया बनाना होगा । छात्र-छात्राओं के इस आंदोलन को सोशल मीडिया पर समर्थन मिलता दिख रहा है। तमाम लोग अपना समर्थन दिखाते हुए सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। इस बीच मीडिया को भी लताड़ लगाई जा रही है और मोदी सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।

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दरअसल, जेएनयू तब चर्चा में आया जब छात्रों ने अपने ही विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में अतिथि के रूप में आए उपराष्ट्रपति और HRD मंत्री के सामने प्रदर्शन किया। ये सभी छात्र-छात्राएं जेएनयू में बढ़ी हुई फ़ीस और तमाम तरह की पाबंदियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। इनपर दिल्ली पुलिस और सीआरपीएफ ने लाठीचार्ज किया और वाटर कैनन भी चलाया।

अब मीडिया से लेकर राजनैतिक गलियारों में भी लोग जेएनयू की चर्चा हो रही है। छात्रों के साथ कई लोग समर्थन में खड़े हैं, देश के दूसरे सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालय को बचाने के समर्थन में सोशल मीडिया पर मुहिम चल रही है।

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