भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दावों के उलट एक रिपोर्ट से ख़ुलासा हुआ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भारत ने विश्व बैंक से सर्वाधिक कर्ज़ लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछली सरकार की तुलना में मोदी राज में 49 फीसदी अधिक कर्ज़ लिया गया है।

यह रिपोर्ट ख़ुद वित्त मंत्रालय की ओर से जारी की गई है। दरअसल वित्त मंत्रालय 2010 से हर साल केंद्र सरकार के कर्ज पर स्टेटस रिपोर्ट जारी करता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2018 तक कर्ज का यह आंकड़ा 82,03,353 करोड़ रुपए पहुंच गया है। जबकि जून 2014 तक यह आंकड़ा 54,90,763 करोड़ रुपए ही था। यानी मोदी राज में 49 फीसदी कर्ज बढ़ा है।

वहीं मार्केट लोन पर निर्भरता के आंकड़े में भी वृद्धि दर्ज की गई है। इन साढ़े चार सालों में यह 47.5 फीसद की वृद्धि के साथ 52 लाख करोड़ रुपए से अधिक पहुंच गया है। जबकि गोल्ड बांड के माध्यम से उठाया गया कर्ज जून 2014 के अंत में जहां जीरो था वहीं मोदी राज में यह 9089 करोड़ रुपए पहुंच गया है।

इसपर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के प्रवक्ता सुधींद्र भदोरिया ने चिंता ज़ाहिर करते हुए मोदी सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा, “भाजपा शासन में भारत दिवालिया हो गया और दिवालिया बना के मोदी जी ताल ठोक रहे हैं। जनता 2019 में गुजरात बेरंग पैदल भेजेगी और भी ख़ाली झोले को कंधे पर डालकर”।

हालांकि सोशल मीडिया पर अक्सर यह दावे किए जाते हैं कि मोदी सरकार देश की पहली ऐसी सरकार है जिसने विदेशों से कर्ज नहीं लिया है। मोदी सरकार के प्रशंसक अक्सर यह भ्रम फैलाते हैं कि नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले देश कर्ज़ में डूबा था, लेकिन मोदी के सत्ता में आने के बाद देश कर्ज़ से मुक्त हो गया।

जबकि आंकड़ों के मुताबिक, सच्चाई यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने विश्व बैंक से सर्वाधिक कर्ज़ लिया है। पीएम मोदी ने सत्ता में आने से पहले देश की जनता से वादा किया था कि वह विदेशों से काला धन वापस लाएंगे, लेकिन वह काला धन लाने के बजाए देश में ढ़ेर सारा कर्ज़ ले आए।

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