लोकसभा 2019 के चुनाव आ रहे हैं और देश का चुनावी माहौल दुविधा से भरा है। अभी तक ये खुलकर नहीं कहा जा रहा है कि इस चुनावी परिणाम में कौन सत्ता के सिंहासन तक पहुँचने में कामयाब होगा। वर्ष 2018 से बैकफुट पर आई मोदी सरकार पिछले कुछ समय से विपक्ष पर दबाव बनाने की कोशिश में है।

हालाँकि, चुनाव का परिणाम तो उसके मुद्दों पर ही निर्भर है। भाजपा की ओर से ये दावा किया जा रहा है कि इस बार भी मोदी सरकार। इसे कामयाब बनाने के लिए गोदी मीडिया मंदिर-मस्जिद और पाकिस्तान को देश के मुख्य बनाने में व्यस्त है। लेकिन हाल ही में आया एक सर्वे ये बता रहा है कि जनता के बीच मुद्दे मंदिर-मस्जिद से भिन्न हैं और ये चुनावी मौसम में से मोदी सरकार की सेहत के लिए अच्छे नहीं हैं।

‘इंस्टिट्यूट फोर डेवलपमेंट एंड इंस्टिट्यूशन’ के सर्वे के मुताबिक, देश के 32.19% लोग इस चुनाव का मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार को मानते हैं। इनके बाद जो मुख्य मुद्दे सर्वे में सामने आए हैं, वो बेरोज़गारी और महंगाई हैं। सर्वे में बताया गया है कि अगड़ी जाती और दलित समुदाय से भ्रष्टाचार को सबसे बड़ा मुद्दा बताया है।

वहीं, ओबीसी समुदाय ने भ्रष्टाचार के साथ महंगाई को बराबर तवज्जों दी है। दलित समुदाय ने भ्रष्टाचार के अलावा महिला सुरक्षा और बेरोज़गारी पर मतदान का मन बनाया है।

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गौरतलब है कि ‘इंस्टिट्यूट फोर डेवलपमेंट एंड इंस्टिट्यूशन’ के सर्वे ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भी भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बताया था और चुनाव परिणाम में यूपीए को कथित 2जी घोटाले की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। इस बार मोदी सरकार पर 2जी घोटाले से ज़्यादा बड़ा और संगीन आरोप है। कथित राफेल घोटाले में प्रधानमंत्री स्वयं घिर चुके हैं।

उन पर प्रधानमंत्री कार्यालय का दुरोपयोग कर उनके करीबी माने जाने वाले अनिल अम्बानी को राफेल विमान समझौते का साझेदार बनाने और विमान को महंगा खरीदने का आरोप है। इसके अलावा बेरोज़गारी की कसौटी पर ये सरकार बुरी तरह फ़ैल हो चुकी है। एनएसएसओ की एक के बाद एक सामने आई रिपोर्टों ने बताया है कि देश में बेरोज़गारी पिछले 45 वर्षों में सबसे ज़्यादा हो गई है।

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वहीं एनएसएसओ की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2011-12 से वर्ष 2017-18 तक देश के कामगारों में पुरुषो की संख्या लगभग 2 करोड़ घटी है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 2.8 करोड़ महिलाओं की नौकरी जा चुकी है। युद्ध के लिए बेताब न्यूज़ चैनल प्राइमटाइम में कुछ भी बहस कर रहे हों लेकिन ये सर्वे और ये रिपोर्ट देश के माहौल को मोदी सरकार के हित में नहीं बता रही है। शायद इतिहास ‘शाइनिंग इंडिया’ की तरह खुद को दोहराने जा रहा है।

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