अपनी धारदार भाषण के लिए पहचाने जाने वाली बीजेपी की वरिष्ठ नेत्री सुषमा स्वराज पिछले कुछ सालों से काफी शांत रहने लगी थीं। लेकिन अब सुषमा स्वराज ने कुछ ऐसा बोला है कि सब हतप्रभ हैं।
20 नवंबर को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मध्य प्रदेश के इंदौर से एक प्रेस वार्ता की। इस दौरान उन्होंने ने ऐलान किया कि वह 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी।
66 वर्षीय सुषमा स्वराज ने कहा कि फैसला पार्टी को लेना है, मगर उन्होंने अगला चुनाव नहीं लड़ने का मन बना लिया है। सुषमा स्वराज मध्य प्रदेश के विदिशा से लोकसभा सांसद हैं और अभी मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं।
ऐसे वक्त में सुषमा स्वराज के इस ऐलान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। आखिर क्या वजह है कि मध्य प्रदेश विधानसभा के मतदान से मात्र 8 दिन पहले उन्होंने इतना बड़ा ऐलान किया?
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वैसे बता दें कि सुषमा स्वराज पिछले कुछ सालों से काफी शांत रहने लगी थीं। कई मुद्दें आए और निकल गए लेकिन सुषमा स्वराज ने मुंह नहीं खोला। शायद अब सबकुछ नरेंद्र मोदी और अमित शाह से पूछकर बोलना होता है इसलिए उन्होंने शांत रहना ही चुना!
लेकिन आज सुषमा स्वराज के इतने बड़े ऐलान के बाद अतित के कुछ प्रसंगों को याद किया जाना चाहिए। शायद उन प्रसंगों में सुषमा स्वराज के चुनाव न लड़ने के फैसले की पृष्ठभूमि नजर आएगी।
11 जून 2014 को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद Motion of Thanks के दौरान सुषमा स्वराज ने ऐतिहासिक भाषण दिया था।
सुषमा स्वराज ने कहा था ”इस राष्ट्रपति भाषण की आभा निराली है। कुछ लोग पूछ सकते हैं कि आप इसे निराला कैसे कहती हैं? तो मैं आपके माध्यम से ये बताना चाहुंगी कि माहाभारत का एक प्रसंग है। जब युद्ध समाप्त हुआ तो धर्मराज युधिष्ठिर भीष्म पितामह के पास पहुंचे।
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उन्होंने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा- पितामह आप हमे सफल शासन का सुत्र बताइए। तो पहला सुत्र पितामह ने बताया कि कभी अतीत को कोस कर अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागना। अगर अतीत अच्छा होता तो लोग उसे बदलते ही क्यों? लेकिन अतित की गलतियों से सबक लेते हुए उन्हें सुधारकर आगे बढ़ना।”
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अब सुषमा स्वराज के इस भाषण का संदर्भ समक्षिए… सुषमा स्वराज ने ये भाषण तब दिया था जब उनकी पार्टी को सत्ता अभी मिली ही थी। सुषमा स्वराज अपने भाषण के माध्यम से ये बताना चाहती हैं कि उनकी पार्टी को सत्ता मिलने से पहले कांग्रेस ने क्या गलत, क्या सही किया उससे कोई मतलब नहीं। वो अतीत को कोस कर अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागेंगी।
क्योंकि ये मंत्री भी कभी किसी की बेटी रही होंगी! पर आज एक बेटी और पिता के साथ नाइंसाफी पर खामोश क्यों हैं ?
लेकिन ये देखा जा सकता है मोदी सरकार के पिछले चार साल में सिर्फ कांग्रेस की गलतियों पर ही चर्चा हुई है। पीएम मोदी खुद जहां तहां नेहरू को तमाम चीजों के लिए जिम्मेदार ठहराते नजर आते रहते हैं। ऐसी स्थिति में सुषमा स्वराज का भाषण उनपर ही प्रश्नचिन्ह खड़े करता है।
ऐसे में हो सकता कि सुषमा स्वराज ने भी मोदी सरकार के पिछले चार सालों की गलतियों से सीख लेकर 2019 में चुनाव ना लड़ने का फैसला लिया हो!