वित्त वर्ष 2018-19 लगभग पूरा हो चुका है और इसके साथ ही मोदी सरकार का कार्यकाल भी। इस वित्त वर्ष के GDP (सकल घरेलू उत्पाद) के आंकड़ें भी आ गए हैं जो इस सरकार की नाकामयाबी की गाथा सुना रहे हैं।

सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस के आंकड़ों के मुताबिक, GDP के पूर्वानुमान को 7.2 फीसद से घटाकर 7 फीसद कर दिया दिसंबर तिमाही में GDP कम होकर 6.6 फीसद हो गई, जो पांच तिमाही का न्यूनतम स्तर है।

पिछले साल की समान तिमाही में यह 7 फीसद रही थी। साथ ही देश के किसानों की आय पिछले 14 वर्षों में सबसे कम रही है। साथ ही ये भी पता चला है कि वित्त वर्ष 2018-19 की तीसरी तिमाही में देश में नया निवेश 14 वर्षों के निम्नतम स्तर पर रहा है।

इस सब का असर रोज़गार पर तो होना ही था और नतीजतन हर साल दो करोड़ नौकरियां देने के नाम पर सत्ता में आए नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में बेरोज़गारी फिर से बढ़ गई है।

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नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि पीएम बनने के बाद वो देश की जीडीपी को 10% की जादुई आंकड़ें पर ले जाएंगें लेकिन ये जादुई आंकड़ा जीडीपी नहीं बेरोज़गारी दर छूती नज़र आ रही है।

सेंटर फोर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2018-19 के तीसरी तिमाही में बेरोज़गारी 9.1% रही है जो पिछले साल की समान तिमाही से 1.6% ज़्यादा है। उस समय बेरोज़गारी दर 7.5% थी।

सीएमआईई के आंकड़ें बताते हैं कि इस दौरान बाज़ार में ग्रेजुएट लोगों की बेरोज़गारी संख्या 14.7% से बढ़कर 15.6% हो गई है। वहीं, युवाओं के बीच (20 वर्ष से 24 वर्ष के बीच) बेरोज़गारी 28% से बढ़कर 37% हो गई है।

बता दें, कि भारत में 49% से ज़्यादा जनसंख्या रोज़गार के लिए कृषि पर आश्रित हैं। जब किसानों की आय ही 14 वर्षों के निम्नतम स्तर पर चली जाएगी तो रोज़गार दर कैसे ऊपर आएगी।

शहरी क्षेत्रों में रोज़गार की स्तिथि निवेश ना होने के कारण ख़राब है और इसलिए ही विश्व में ज़्यादा युवा शक्ति बाले देश में बेरोज़गारी दर 10% का आंकड़ा छूने वाली है।

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