2014 लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि वो हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देंगे। नरेंद्र मोदी को सत्ता में साढ़े चार साल से ज्यादा हो चुके हैं। और लगभग 100 दिनों में दोबारा से लोकसभा चुनाव होने वाला है।
मोदी के वादे के मुताबिक अब तक साढ़े नौ करोड़ से ज्यादा युवाओं को रोजगार मिल जाना चाहिए। लेकिन पिछले दिनों आयी CMIE की रिपोर्ट बताती है कि 2018 में 1 करोड़ लोगों की नौकरी खत्म चली गई और बेरोजगारी दर रिकॉर्ड स्तर पहुंच चुका है।
CMIE की रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर 2017 में देश में 40.79 करोड़ लोगों के पास रोजगार था जो दिसंबर 2018 में घटकर 39.07 करोड़ हो गया।
अगर 15% सवर्णों को 10% आरक्षण मिलेगा तो 70% आबादी वाले पिछड़ों को भी 65% आरक्षण मिले : RJD
यानी एक करोड़ की नौकरी चली गई, इस एक करोड़ इसमे से 80 प्रतिशत महिलाएं थी और 90 प्रतिशत लोग ग्रामीण भारत के थे।
इस तरह नई नौकरी न देने और पुरानी नौकरी को खत्म करने के बाद मोदी सरकार ने नई बहस छेड़ दी। सोमवार को केंद्रीय कैबिनेट ने गरीब सवर्णों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण देने की मंज़ूरी दी। मोदी सरकार इसे लेकर लोकसभा में संविधान संशोधन बिल पेश किया है।
2019 के लोकसभा चुनाव से चंद माह पहले लिए गए इस फैसले को ‘मोदी का मास्टरस्ट्रोक’ बताया जा रहा है। लेकिन तमाम राजनीतिक पार्टियां इसे मोदी का चुनावी जुमला बता रही हैं। उनका कहना है कि जब नौकरियां ही नहीं है तो आरक्षण देने का क्या फायदा।
CMIE रिपोर्ट: 1.1 करोड़ लोगों की नौकरी गई, कांग्रेस बोली- इसीलिए आंकड़े छुपा रहे थे मोदी
सोशल मीडिया पर भी सवर्णों को आरक्षण देने का मजाक बनाया जा रहा है। विशाल नाम के फेसबुक यूजर ने पहेली के अंदाज में लिखा है ‘नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण दूँगा, लेकिन नौकरी नहीं दूँगा! बताओ कौन ?’