ज़मानत क़ानूनी अधिकार है। संजीव भट्ठ 22 साल पुराने एक मामले में सितम्बर महीनें से बंद हैं। आख़िर उनकी ज़मानत याचिका बार-बार ख़ारिज क्यों की जा रही है?

ये बात कही है जानी मानी पत्रकार और लेखक सागरिका घोष ने। उन्होंने ये बात 2015 में बर्ख़ास्त कर दिए गए आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ठ के लिए कही है।

संजीव सितंबर से 22 साल पुराने मादक पदार्थ ज़ब्त करने के एक मामले में जेल में बंद हैं और उनकी ज़मानत याचिका लगातार ख़ारिज की जा रही है।

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पहले उनकी ज़मानत याचिका पालनपुर की निचली अदालत ने ख़ारिज की फिर दी हाईकोर्ट के नयायाधीश ए. वाई. कोगजे ने इस पर सुनवाई से इंकार कर दिया।

संजीव भट्ट की ओर से फिर से उच्च नयायालय में याचिका दायर की गई थी जिस पर कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर 22 साल पुराने मामले में संजीव की ज़मान से संबंधित जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 8 जनवरी को होनी है। जस्टिस एस. एच वोरा ने राज्य सरकार को अगली सुनवाई तक जवाब देने को कहा है।

गुजरात दंगों के लिए मोदी को ज़िम्मेदार ठहराया था-

2002 गुजरात दंगों में न जाने कितने मासूमों की जान गई थी। संजीव भट्ट ने तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाते हुए कहा था कि-

सीएम ने शीर्ष पर बैठे सभी अधिकारियों को ये हुक्म दिया था कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाने की घटना के बाद क्रोधित हिंदुओं को बदला लेने दें।

ये बात अलग है कि संजीव के आरोपों को शीर्ष अदालत ने ख़ारिज कर दिया था।

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