पिछले दो दशकों से समाजवादी पार्टी का अजेय दुर्ग रही बदायूं लोकसभा सीट पर तीसरे चरण के लिए 23 अप्रैल को मतदान होंगे। इस सीट पर सपा के मौजूदा सांसद धर्मेंद्र यादव का मुकाबला बीजेपी की संघमित्रा मौर्य और कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी से है।

संघमित्रा मौर्य सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं। पिछड़े वर्ग से आने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य लंबे समय तक बीएसपी से जुड़े रहे हैं। वहीं सलीम इकबाल शेरवानी की बात करें तो वह इस सीट से चार बार सांसद चुने जा चुके हैं। यहां उनकी काफी लोकप्रियता हैं, जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है।

लेकिन पिछले दो दशकों के रिकॉर्ड को देखते हुए यहां सपा को हरा पाना कांग्रेस और बीजेपी के लिए आसान नहीं है। सपा का इस सीट पर 1996 से ही कब्ज़ा है। 1996 में सलीम शेरवानी ने चुनाव जीतकर यह सीट सपा के नाम की थी। तभी से यहां सपा का दबदबा है। सपा इस सीट पर कितनी मज़बूत है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले चुनाव में मोदी लहर के बावजूद सपा ने इस सीट पर बड़ी जीत दर्ज की थी।

2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव को 498378 (48.5फीसदी) वोट मिले थे। जबकि दूसरे नंबर पर रही बीजेपी को 332031 (32.31 फीसदी) वोट मिले थे। वहीं बीएसपी 15.28 फीसदी वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रही थी। इस बार धर्मेंद्र यादव सपा-बसपा के संयुक्त प्रत्यासी हैं, ऐसे में यहां उनकी दावेदारी सबसे ज़्यादा मज़बूत है।

यहां का जातीय समीकरण

18 लाख के करीब वोटर्स वाली बदायूं लोकसभा सीट पर मुस्लिम और यादवों का वर्चस्व है। यहां मुस्लिम वोटर्स साढ़े तीन लाख हैं तो यादव वोटर्स चार लाख। यहां दलित वोटर्स 2 लाख के करीब हैं। वहीं ठाकुर और ब्राह्मण वोटर्स 1-1 लाख के करीब हैं। यहां मुस्लिम-यादव के बाद सबसे बड़ी आबादी मौर्य-शाक्य की है, जो करीब 2 लाख 70 हज़ार के करीब हैं।

संघमित्रा मौर्य इसी समाज से आती हैं।

बीजेपी ने इस बार अपने पुराने प्रत्याशी वागीय पाठक का टिकट काटकर संघमित्रा मौर्य को अपना उम्मीदवार इसीलिए बनाया है ताकि वह मौर्य-शाक्य समाज के ज़्यादा वोट जुटा सकें और बीजेपी के परंपरागत वोटर्स के सहारे यहां पार्टी सपा के किले में सेंध लगा सके। लेकिन यहां पुराने मुस्लिम-यादव गठजोड़ और इस बार इस गठजोड़ में दलितों के शामिल होने के बाद बीजेपी के लिए राह आसान नहीं दिख रही।

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क्या है इस सीट का इतिहास

बीते करीब दो दशक से सपा का गढ़ रही बदायूं लोकसभा सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस का मिला जुला असर रहा था। शुरुआती दो चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली, लेकिन 1962 और 1967 में यह सीट भारतीय जनसंघ के खाते में रही। 1977 के चुनाव को छोड़ कांग्रेस ने 1971, 1980 और 1984 में जीत हासिल की थी।

हालांकि 1984 के बाद कांग्रेस फिर कभी इस सीट पर जीत नहीं सकी। 1989 में बदायूं सीट चुनाव जनता दल के खाते में गई और 1991 में बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा जमाया। 1996 में यहा सपा की एंट्री होती है, जो अभी तक क़ायम है।

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