साल 2017 में जब अजय सिंह बिष्ट उर्फ योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे तो उनके बारे में कई तरह की जानकारी सामने आयीं। मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि योगी साइंस के छात्र थे और उन्होंने गढ़वाल यूनिवर्सिटी से गणित में ग्रेजुएशन किया है।

हालांकि जिस मीडिया संस्थान ने योगी को मैथ्स में ग्रेजुएट बताया था, उसी संस्थान ने बाद में खबर छापी कि उत्तर प्रदेश सरकार योगी आदित्यनाथ की शैक्षणिक योग्यता से जुड़ी जानकारी नहीं दे रही है। RTI के माध्यम से जानकारी मांगी गई थी कि योगी कक्षा 8 से आगे की शैक्षणिक योग्यताओं के प्रमाण दें लेकिन उन्होंने नहीं दिया।

ख़ैर यहां हमने योगी की शैक्षणिक योग्यता पर बात इसलिए कि ताकी आगे की बात आप आसानी से समझ सकें। 3 जनवरी 2019 को योगी आदित्यनाथ ने कुछ ट्वीट किए जिनपर बात करना बेहद जरूरी है।

यहां हम योगी आदित्यनाथ की दो ट्वीट पर बात करेंगे। पहला ट्वीट जिसमें लिखा है ‘संविधान में मेरी निष्ठा भारत के उन ऋषि-मुनियों की परंपरा का ही हिस्सा है जो किसी अन्य देश काल में सामाजिक व्यवस्था कायम करने के लिए स्मृतियों (सामाजिक आचार संहिता) की रचना कर रहे थे।’

दूसरे ट्वीट में लिख है ‘आजादी के बाद के दौर में ‘भारतीय संविधान’ को देश ने अपने सबसे पवित्र संहिता के रूप में अपनाया और इस संहिता को अटूट विश्वास से अंगीकार किया। अतीत में हमारे ऋषियों ने मनुस्मृति सहित अनेक स्मृतियां बनाई थीं ताकि समाज को चेतना के विभिन्न धरातल पर संचालित किया जा सके।’

पहले ट्वीट से कुछ ज्यादा आपत्ती नहीं है क्योंकि कोई इंसान किसी से भी इंस्पायर हो सकता है बस निष्ठा ऐसी चीजों में न हो जो समाज को हानि पहुंचाता हो। लेकिन योगी का दूसरा ट्वीट एक बार फिर उनकी शैक्षणिक योग्यता जानने के लिए आरटीआई डालने को मजबूर करता है।

योगी ने अपने दूसरे ट्वीट में सीधे सीधे जातिवाद, पितृसत्ता, भेदभाव, छुआछुत की वकालत करने वाली मनुस्मृति को भारतीय संविधान के बराबर ला खड़ा किया है। भला न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व की बात करने वाले भारतीय संविधान की तुलना विषैले मनुस्मृति से कैसे की जा सकती है?

ये बहुत की खतरनाक बात है कि देश के सबसे बड़े राज्य के सबसे ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति की आस्था एक ऐसे धर्मशास्त्र में है जो महिलाओं की गुलामी, दलितों के शोषण, छुआछुत, भेदभाव, अंधविश्वास का पक्षधर है। क्या मनुस्मृति में योगी आदित्यनाथ की आस्था उनकी अवैज्ञानिक, जातिवादी, पितृसत्तात्मक मानसिकता को नहीं दर्शाता?

और विडंबना देखिए कि जिस मनुस्मृति की तुलना आदित्यनाथ अंबेडकर के संविधान से कर रहे हैं, उस मनुस्मृति को खुद अंबेडकर ने 25 दिसंबर 1927 को जलाया था। आंबेडकर मनुस्मृति को ब्राह्मणवाद की मूल संहिता मानते थे। इसका दहन करते हुए उन्होंने कहा था कि यह एक ब्राम्‍हण, पुरूष सत्‍तात्‍मक, भेदभाव वाला कानून है। इसे खत्म किया जाना चाहिए।

यानी जिस व्यक्ति ने संविधान बनाया वो मनुस्मृति को संविधान के विपरीत मानता था लेकिन योगी आदित्यनाथ मनुस्मृति और संविधान को बराबर मान रहे हैं। अब अगर ऐसी हालत है तब तो सच में सीएम योगी कि शैक्षणिक योग्यता से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करना उनके लिए सही नहीं होगा।

बताते चले कि योगी जिस मनुस्मृति की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं उसके पांचवें अध्याय के 148वें श्लोक में लिखा है “एक लड़की हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहनी चाहिए, शादी के बाद पति उसका संरक्षक होना चाहिए, पति की मौत के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर निर्भर रहना चाहिए, किसी भी स्थिति में एक महिला आज़ाद नहीं हो सकती।”

इस श्लोक की जानकारी मुझे बीबीसी के एक आर्टिकल से मिली। मनुस्मृति में ऐसी कई बात लिखी हैं जो समतामूलक समाज में यकीन रखने वालों को नागवार गुजरेगी।

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