मीडिया जितना बिक सकता था, बिक चुका है अब बिकने को कुछ नहीं बचा। पत्रकारिता के नाम पर खुलेआम दलाली हो रही है। सत्ता की गुलामी हो रही है। सत्ता की गोद में बैठी मीडिया हर रोज सिर्फ और सिर्फ विपक्ष से सवाल पूछ लोकतंत्र को लगातार कमजोर कर रही है।

सरकार से सवाल करना, नीतियों की निष्पक्ष समीक्षा करना, विपक्ष की आलोचनाओं को जगह देना ही पत्रकारिता का आदर्श है। लेकिन ये आदर्श की बातें अब गोदी पत्रकारों के लिए बेकार की बातें हो गई हैं।

गोदी पत्रकारों का अब इकलौता काम विपक्ष से सवाल करना हो गया है। सत्ताधारी दल के एक आरोप को मुद्दा बनाकर विपक्ष के खिलाफ मेनस्ट्रीम मीडिया की ये मुहीम पत्रकारिता के पतन का सबूत है। विपक्ष के आरोपों को गायब कर देने वाली मीडिया अब हर रोज सत्ताधरी बीजेपी के आरोप पर बहस करती है। हर रोज की बहस में आरोप सत्ताधारी दल का होता है और जवाब विपक्ष दे रहा होता है।

लोकतंत्र के लिए ये उल्टी धारा की बेहद खतरनाक है, इसका कुप्रभाव समाज में दिखने लगा है। बीजेपी के कई झूठ को जनता सच मानने लगी है। बीजेपी के प्रोपगेंडा को जनता सूचना समझने लगी है। न्यूज चैनलों को देखना अपने नागरिक बोध को खत्म करना है। खुद को सूचना विहीन करना है।

एक उदाहरण से समझिए… बीजेपी का जन्म ही धर्म के आधार पर राजनीति करने से हुई। बीजेपी के साम्प्रदायिक का एक लंबा इतिहास है। ये पार्टी आज भी धर्म का इस्तेमाल वोट पाने के लिए करती है। आज भी बीजेपी प्रवक्ता अपना बचाव राम मंदिर और हिंदू धर्म को ढाल बनाकर करते हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का घोषणापत्र भी इसका उदाहरण है। घोषणा पत्र में कहा गया था कि, ‘भाजपा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए संविधान के भीतर सभी संभावनाएं तलाशने के अपने रुख को दोहराती है।’

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी राममंदिर पर वोट मांगा गया था। अब भी बीच-बीच में ये आवाज सुनाई देती रहती है। इस पूरे प्रकरण पर आज तक गोदी मीडिया ने कुछ नहीं बोला। कभी धर्म के नाम पर वोट मांगने वाली बीजेपी से इस बारे में सवाल नहीं पूछा। उल्टा पूरे पांच साल मीडिया ने मंदिर को मुद्दा बनाने में अपनी जान झोंक दी।

लेकिन आज जब कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी अयोध्या पहुंची तो जी न्यूज ने इसे चुनावी पर्यटन बताने की कोशिश की। जी न्यूज ने बकायदा पूरा शो किया। मुद्दा बना- अयोध्या दर्शन प्रियंका का चुनावी पर्यटन?

प्रश्न चिह्न लगाकर अपनी बात कहने की कला पुरानी हो चुकी है लेकिन गोदी मीडिया इसे अपने सबसे बड़े हथियार के रूप में अब भी इस्तेमाल करती है।

लोकसभा चुनाव के तारीखों का ऐलान हो चुका है। बीजेपी अपना कार्यकाल खत्म कर फिर एक बार नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाकर चुनाव लड़ रही है। मोदी चुनावी रैलियों में अपने कार्यकाल का हिसाब देने के बजाए विपक्षी दलों से हिसाब मांग रहे हैं। धर्म, राष्ट्रवाद, सेना का जमकर इस्तेमाल हो रहा है।

रोजगार, महिला सुरक्षा, पर्यावरण… आदि जैसे जनकल्याणकारी मुद्दें चुनाव से गायब हैं। हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने के वादे पर बात नहीं हो रही है, गंगा सफाई पर बात नहीं हो रही है, आदर्श ग्राम योजना पर बात नहीं हो रही है, 100 स्मार्ट सीटी कहां बनी हैं ये नहीं पूछा जा रहा है…

कितना कुछ है पूछने को लेकिन सत्ता की गोदी में बैठी मीडिया बीजेपी का अजेंडा चलाने में व्यस्त है। बीजेपी की तरह विपक्ष पर हमला करने में व्यस्त है। कोई ऐसा दिन नहीं बीत रहा जब न्यूज चैनल बीजेपी द्वारा उछाले मुद्दे पर बहस न करते हो। ऐसा लगता है मानो न्यूज चैनल हर रोज बीजेपी की तरफ से टॉपिक मिलने का इंतजार करते हो। रोज वही खोखले मुद्दे जिससे आम जनता के जीवन में कोई लाभ नहीं मिलने वाला।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here