मोदी सरकार के साढ़े चार साल के शासनकाल में केंद्रीय संस्थाओं ने अपनी विश्वस्नीयता खोई है। यही वजह है कि आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में अब सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) के लिए दरवाज़े बंद हो गए हैं।

आंध्र प्रदेश की चंद्रबाबू नायडू सरकार और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी ने सीबीआई को अपने राज्य में ऑपरेट करने की इजाज़त यानी कंसेंट वापस ले लिया है। अब सीबीआई को इन दोनों ही राज्यों में ऑपरेट करने के लिए राज्य सरकार से इजाज़त लेनी होगी।

बता दें कि सीबीआई की स्थापना दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट एक्ट- 1946 के तहत हुई थी। यह दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिशमेंट के सदस्यों को राज्य के भीतर अपनी शक्तियों और अधिकारक्षेत्र का प्रयोग करने का हक़ देती है। आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल भी इसके सदस्य थे।

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आंध्र प्रदेश ने पहले एक आदेश पारित करके सीबीआई को ‘जनरल’ इजाज़त दी हुई थी और पश्चिम बंगाल ने भी 1989 में ऐसी इजाज़त दी थी। लेकिन अब इन दोनों राज्यों ने इसी क़ानून की धारा 6 के तहत कंसेंट वापस ले लिया है। सेक्शन 6 के मुताबिक़, दूसरे किसी राज्य में कार्रवाई करने के लिए राज्य की लिखित इजाज़त लेना ज़रूरी होता है।

आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने सीबीआई पर पाबंदी लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है। वह इसके ज़रिए राज्य की टीडीपी सरकार को अपदस्थ करना चाहती है।

सीएम नायडू के यह आरोप काफी गंभीर हैं। अगर इन आरोपों में ज़रा भी सच्चाई है तो फिर यह राष्ट्रीय संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है। ताज़ा आरोपों और सीबीआई में हुए हालिया घटनाक्रम को देखते हुए सीबीआई की स्वायत्तता भी ख़तरे में नज़र आती है।

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मोदी सरकार पर पहले भी राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को साधने के लिए सीबीआई का दुर्पयोग करने के आरोप लगते रहे हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव मुखर रूप से इस बात को रख चुके हैं।

लेकिन अब जिस तरह से राज्य सरकारें सीबीआई की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कंसेंट वापस ले रही हैं, इससे पता चलता है कि मोदी सरकार के शासनकाल में राष्ट्रीय एजेंसियों का पतन हुआ है।

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