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सुप्रीम कोर्ट द्वारा आलोक वर्मा को दोबारा सीबीआई निदेशक के पद पर नियुक्त करने के बाद मोदी सरकार के हाथ पाँव-फूले हुए हैं कि कहीं आलोक वर्मा राफ़ेल मामले में कोई एफ़आईआर दर्ज कर जाँच की प्रक्रिया शुरु न कर दें।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कल के अपने फ़ैसले में कहा था कि, वर्मा कोई भी नीतिगत फ़ैसला नहीं ले सकते हैं।
लेकिन अब सीबीआई के सूत्रों का कहना है कि, FIR दर्ज करना और तबादले करना रूटीन है न कि नीतिगत फ़ैसला। यानी अब सरकार की साँस अटकी हुई है।
‘जो मोदी के सामने नहीं झुकेगा उसे आलोक वर्मा की तरह हटा दिया जाएगा या फिर जज लोया की तरह मिटा दिया जाएगा’
मोदी सरकार इतनी घबराई हुई है कि, आलोक वर्मा के भविष्य पर फ़ैसला करने वाली जो सेलेक्टिव कमेटी एक हफ़्ते में बुलाए जाने वाली थी। सरकार उसे एक-दो दिन के अंदर ही बुलाए जाने की तैयारी कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील प्रशांत भूषण कह रहे हैं कि, दरअसल सरकार के इस मीटिंग बुलाए जाने के पीछे की वजह है राफ़ेल जाँच का डर, इसलिए एक हफ़्तें में बुलाए जाने वाली हाई पावर मीटिंग को सरकार ने एक-दो दिन के अंदर बुलाए जाने की सोची है। ताकी इसके ज़रिए CBI निदेशक आलोक वर्मा को हटाया जा सके।
प्रशांत भूषण लिखते हैं कि, “सरकार फिर से सीबीआई निदेशक बने आलोक वर्मा को राफ़ेल मामले में कोई भी एफ़आईआर दर्ज करने से हर हाल में रोकना चाहती है। तभी वो वर्मा को हटाने के मक़सद से उच्च स्तरीय समीति की बैठक 1-2 दिन के अंदर बुला रहे हैं।… जाँच से इतनी हताशा क्यों?”
सरकार का सीबीआई के दोबारा नियुक्त निदेशक आलोक वर्मा को लेकर इतना संवेदनशील होना कहीं न कहीं शक तो पैदा करता है। अगर सबकुछ सही है तो फिर डर काहें का?