मोदी सरकार पर राफेल डील मुसीबत बनती जा रही है। सरकार की तरफ से जब भी कोई मंत्री राफेल पर सफाई पेश करता है उसके कुछ दिन बाद कोई न कोई नया खुलासा हो जाता है।

अब एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार और फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट के बीच राफेल विमानों की खरीदारी को लेकर हुई डील, पिछली डील की तुलना में करीब 40 फीसदी ज्यादा रकम में हुई है।

दरअसल रक्षा मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारीयों की फाइल से एक खुलासा हुआ है, जानकारी के मुताबिक ये दोनों अधिकारी विमानों के सौदे में प्रमुख भूमिकओं में थे और इन्हीं दोनों ने डसॉल्ट के साथ विमानों की कीमतों को लेकर मोल-भाव भी किया है।

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बिजनेस स्टैण्डर्ड ने इन्हीं अधिकारियों की कुछ फाइलों का हवाल देते हुए बताया है कि डसॉल्ट की तरफ ऑफर की गई पिछली कीमतों की तुलना में भारतीय सरकार ने नये सौदे करीब 40 फीसदी ज्यादा कीमतों में की है।

फ्रांसीसी कंपनी ने 126 एयरक्राफ्ट की कीमत करीब 19.5 बिल‌ियन यूरो रखी है। इस लिहाज से दसॉल्ट ने एक एयरक्राफ्ट की कीमत औसतन 155 मिलियन यूरो रखी है। इसमें विमान की कीमत, ट्रांसफर तकनीक, उसका देशीकरणकरना, उसे भारतीय परिस्‍थ‌ियों के अनुरूप यहां के हिसाब से ढालना, उससे संबंधित हथियार, स्पेयर और रखरखाव गारंटी भी शामिल है।

वहीँ मोदी सरकार ने जब साल 2016 में 36 विमानों राफेल डील की तब ये सौदा 7.8 बिलियन यूरो का सौदा किया गया इस हिसाब से प्रति विमान की कीमत  217 मिलियन यूरो आती है जोकि पिछले राफेल सौदे की तुलना में करीब 40 फीसदी ज्यादा है।

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ऐसे में मोदी सरकार को ये जवाब ज़रूर देना चाहिए की वो जब सौदे में पैसे की बचत बताते हुए कहती है कि हमने मनमोहन सिंह सरकार के समय की गई डील की तुलना में 20 फीसदी कम है जोकि मीडिया में आई रिपोर्ट के हिसाब से गलत है।

जानें- क्या है विवाद

राफेल एक लड़ाकू विमान है। इस विमान को भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है। ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस डील में सरकार ने उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुँचाया है।

बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल विमानों को 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।

इनमें से 18 विमान तैयार स्थिति में मिलने थे और 108 को भारत की सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), फ्रांस की कंपनी ‘डसौल्ट’ के साथ मिलकर बनाती। अप्रैल 2015, में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी फ़्रांस यात्रा के दौरान इस डील को रद्द कर इसी जहाज़ को खरीदने के लिए में नई डील की।

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई डील में एक विमान की कीमत लगभग 1670 करोड़ रुपये होगी और केवल 36 विमान ही खरीदें जाएंगें। क्योंकि 60 हज़ार करोड़ में 36 राफेल विमान खरीदे जा रहे हैं। नई डील में अब जहाज़ एचएएल की जगह उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी ‘रिलायंस डिफेंस लिमिटेड’ डसौल्ट के साथ मिलकर बनाएगी।

जबकि अनिल अंबानी की कंपनी को विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है क्योंकि ये कंपनी राफेल समझौते के मात्र 12 दिन पहले बनी है। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर भी नहीं होगा जबकि पिछली डील में टेक्नोलॉजी भी ट्रान्सफर की जा रही थी।

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