भारत के सामंती ब्राह्मणवादी सवर्ण पिछले कई वर्षों से आरक्षण के समीक्षा की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि समाज से जातिवाद खत्म हो चुका है इसलिए आरक्षण जाति के आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर मिलनी चाहिए।

ये कुतर्क उन्हीं लोगों की तरफ से परोसा जाता है, जो समाजिक बराबरी के नाम से ही तिलमिला जाते हैं। अंतरजातीय विवाह को ये सनातन पाप मानते हैं लेकिन फिर भी कहते हैं कि जातिवाद कहां? जातिवाद तो पहले था, अब खत्म हो गया।

लेकिन जातिवाद तो भारतीय समाज की वो क्रूर सच्चाई है जो समय समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहती है। ताजा उदाहरण बीजेपी शासित हिमाचल प्रदेश में देखने को मिला है।

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हिमाचल प्रदेश में एक जिला है कुल्लु। हिमाचल पथ परिवह निगम (HRTC) में काम करने वाले चालकों और कंडक्टरों का कहना है कि कुल्लु के अंदरूनी इलाके में कुछ ऐसे गांवों हैं जहां उनके साथ जातीय और धार्मिक भेदभाव किया जाता है। HRTC के क्षेत्रीय प्रबंधक डी के नारंग ने कुल्लू के डिप्टी कमिश्नर को इसकी लिखित शिकायत भी दी है। लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

चालकों और कंडक्टरों कहना है कि उन गांवों में उन्हें खाना और रहने की जगह भी नहीं दी जाती। इतना ही नहीं कुछ जगहों पर 10000 का जुर्माना भी लिया जाता है। HRTC के क्षेत्रीय प्रबंधक डी के नारंग ने डिप्टी कमिश्नर से कुल्लु के उन गांवो में बसों को न भेजने की मांग की है।

डी के नारंग लिखते हैं कि ‘हम सभी मौसमों में हिमाचल के दूरस्थ गांवों को जोड़ते हैं। लेकिन कुछ गांवों में विशेष रूप से अनुसूचित जातियों के कर्मचारियों को परेशान किया जा रहा है। और वहां उन्हें बुनियादी सुविधा भी नहीं दी जा रही है।

हमारे चालक और कंडक्टर को रात में गांव में रुकना पड़ता है। सर्दी का मौसम शुरू हो गया है। उन्हें रात बिताने के लिए कमरे की जरूरत पड़ती है, खाने की जरूरत पड़ती है। लेकिन जब भी किसी ग्रामिण को पता चलता है कि चालक या कंडक्टर दलित है उसे कमरा और खाना नहीं दिया जाता।’

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नारंग आगे लिखते हैं कि ‘कुल्लु जिला के खाणीपंद गांव में तो अनुसूचित जाति के चालक और कंडक्टर को वहां का घर छूने तक नहीं दिया जाता। और अगर गलती से भी घर छू जाता है तो देवता की नाराजगी के नाम पर डरा, धमाकाकर 10,000 रूपए जुर्माना वसूला जा रहा है।’

अब सवाल उठता है कि अगर कुल्लु के इन गांवों में बसें न जाएं तो यहां के लोग किसकी सवारी करेंगे? क्या ब्राह्मणवादी मानसिकता के ये लोग अपने भगवान की ही तरह चूहे, बाघ, मोर, बत्तख की सवारी करेंगे?

जहां तक जुर्माने की बात है तो ये कैसा भगवान है जो किसी के छू लेने से नाराजा हो जाता है और 10000 रुपए लेकर मान भी जाता है? क्या भगवान घूसखोर हैं? अगर भगवान पैसे चाहते भी हैं तो सवाल ये है कि उनतक 10000 रुपए लेकर जाता कौन है? पैसा भगवान तक पहूंच भी रहा है या भगवान की नाराजगी के नाम पर कुल्लु के सवर्ण भ्रष्टाचार खेल खेल रहे हैं?

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