बैंक जहां बढ़े हुए एनपीए (गैर निष्पादित परिसंपत्तियों यानी फंसे हुए क़र्ज़) की मार झेल रहें है वहीं दूसरी तरफ गैर बैंकिंक सेक्टर में इंफ्रास्ट्रक्चर लिजिंग एंड फाइनेंशयल सर्विसेस (IL&FS) जैसी बड़ी कंपनियां डूब चुकी हैं.

साथ ही बाकी कंपनियों पर भी डूबने का खतरा लगातार बना हुआ है. इसी बीच सरकार औऱ कैंद्रीय बैंक आरबीआई के बीच मतभेद की खबरें भी लगातार यह संकेत दे रहीं है कि अर्थव्यवस्था में हालात सामान्य तो बिल्कुल नहीं हैं.

अगर मंदी के इस दौर की बात करें तो यह सिर्फ भारत की अर्थव्यवस्था में ही नहीं है बल्कि पूरी दुनिया में हर उभरती अर्थव्यवस्था इस मंदी की मार झेल रही है.

हाल ही में आई अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) रिपोर्ट के मुताबिक भारत सहित सभी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं से पैसा बाहर जाने के कारण और निवेश में भारी कमी के कारण यह स्थिति बनी है.

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IMF की रिपोर्ट के अनुसार, भारत सहित विश्व भर की सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में साल 2017-18 में 42 बिलियन डॉलर कम निवेश हुआ है. साथ ही साथ रिपोर्ट के अनुसार, साल के आखिरी महीनों में इसके 10 बिलियन डॉलर और कम होने की बात कही गई है.

IMF ने अपनी रिपोर्ट में आने वाले 2019 का अनुमान लगाते हुए कहा है कि ये मंदी 2019 में भी जारी रहने वाली है. जिसमें निवेश में 36 बिलियन डॉलर कम निवेश की संभावना है.

इस रिपोर्ट ने विश्व भर के की उन सभी अर्थव्यव्थाओं के लिए अब खतरे की घंटी बजा दी जो निवेशको द्वारा लगाए जाने वाले पैसे पर निर्भर रहती है. लेकिन भारत में इस समस्या के साथ-साथ भारत के डूबते बैंक भी देश की परेशानियां बढ़ा रहें हैं.

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इस वक्त देश के सरकारी बैंकों का घाटा एतिहासिक ऊंचाईयों पर है. लगभग 10 लाख करोड़ रुपये के करीब. इस फंसे हुए कर्ज में एक बड़ा हिस्सा औद्योगिक क्षेत्रों में दिया गया है. करीब 7.03 लाख करोड़.

मजे की बात यह है कि बैंकों द्वारा दिए गए इस भारी भरकम 7.03 लाख करोड़ के कर्जे में बहुत बड़ी रकम कुछ चुनिंदा लोगों दी गई है. सरकार पर विपक्ष का आरोप है कि बैंकों से कर्जा लेने वाले ये बड़े उद्योगपति सरकार को चुनावों में फंडिंग करते है.

इसलिए ही सरकार इन फंसे हुए कर्जदारों पर ठंडा रुख अपनाए हुए है. वहीं इन्हीं बैंकों द्वारा किया गया दूसरे क्षेत्रों में निवेश भी लगातार एक के बाद एक डूब रहा है.

पिछले महीने जब IL&FS जैसी बड़ी कंपनी डूब गई. इस कंपनी के सबसे बड़े शेयरधारकों में एक नाम भारतीय स्टेट बैंक का भी है. कंपनी में इस सरकारी बैंक की के करीब 250 करोड़ रुपये लगे हुए है.

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एनपीए में एक बड़ा हिस्सा जो दिया गया है उसमें भी एक बड़ी राशि इस बैंक की है. सरकार की ओर से फिलहाल इन मुद्दों को लेकर स्थिति साफ नहीं है. क्योंकि सरकार एनपीए लेने वालों और जानबुझ कर ना लौटाने वाले लोगों की नाम की सूची तक सार्वजनिक ना करने पर घिरी हुई है.

वहीं विपक्ष भी सरकार को अर्थव्यवस्था के कमजोर होने पर घेरने और बैंकों से कर्ज लेने वाले के नाम जाहिर करने में असफल रही है.

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