लोकसभा से तीन तलाक बिल को हरी झंडी मिलने के बाद अब राज्यसभा में भी इसे पास कराने को लेकर केंद्र की मोदी सरकार जद्दोजहद कर रही है। विपक्ष यहां भी इस बिल का विरोध कर रहा है और इस बिल को प्रवर समिति को भेजने की मांग कर रहा है।

दरअसल, विपक्ष बिल में तीन तलाक को आपराधिक मामला बनाने और तीन साल की सजा के प्रावधान के खिलाफ़ है। लेकिन सरकार अपने प्रस्ताव पर अडिग है। उसका कहना है कि यह बिल महिलाओं के अधिकार के लिए है, इसलिए इसे सख्त बनाने के लिए सज़ा का प्रावधान ज़रूरी है।

मीडिया ने भी सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। इस मुद्दे पर टीवी पर बहस कराने वाले एंकरों का कहना है कि सरकार के इस कदम से अब मुस्लिम महिलाएं प्रताड़ना से बच जाएंगी और उन्हें उनका अधिकार मिलेगा।

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लेकिन एंकरों की यह चिंता सिर्फ मुस्लिम महिलाओं तक ही सीमित नज़र आ रही है। उनके सवालों में समाज की दूसरी महिलाओं के अधिकार की बात नहीं हो रही। एंकर बिना तलाक के पत्नी को छोड़ देने वालों के खिलाफ़ कानून बनाने की बात नहीं कर रहे।

मीडिया के इसी रवैये पर सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने तीखी टिप्पणी की है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा,

“क्या ऐसा एक भी पत्रकार है, जो तीन तलाक बिल पर पूछ सके कि कैसे एक मुस्लिम व्यक्ति को पत्नी को छोड़ने पर जेल हो सकती है, लेकिन इसी तरह हिंदू व्यक्ति नरेंद्र मोदी को जसोदाबेन को छोड़ने पर जेल क्यों नहीं हो सकती?

उन्होंने आगे लिखा, “जो मुसलमानों के लिए सार्वजनिक मामला है वो मोदी के लिए निजि मामला नहीं हो सकता”!

वहीं विपक्षी इस बिल को लेकर सरकार की नीयत पर सवाल खड़े कर रहे हैं। विपक्षियों का कहना है कि सरकार महिलाओं के अधिकार के नाम पर मुसलमानों को अपना निशाना बनाना चाहती है, उसे महिलाओं के अधिकार की कोई चिंता नहीं है।

इससे पहले लोकसभा में इस बिल पर बहस के दौरान ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन के चीफ़ असद्दुीन ओवैसी ने कहा था कि सरकार इस बिल के ज़रिए मुस्लिम पुरुषों को जेल भेजकर उनकी पत्नियों को सड़क पर लाना चाहती है।

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उन्होंने इस बिल में 3 साल की सज़ा के प्रावधान पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि हमारे मुल्क़ में तलाक़ के कानून में अगर किसी हिंदू को एक साल की सज़ा का प्रावधान है तो मुसलमानों के लिए ये सज़ा तीन साल क्यों रखी गई है?

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