प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत मोदी सरकार ने बदहाल किसानों की दोगुनी आय करने जैसी अन्य योजनाएं लागू की हैं।

लेकिन, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के शुरुआत में ही गड़बड़ी होने के बाद अब संसद की एक समिति ने कहा है कि, “सरकार द्वारा चलाई जा रही फसल योजनाओं में पारदर्शिता की कमी सहित कई समस्याएं व्याप्त हैं।”

साथ ही समिति ने सुझाव दिया है कि ज्यादा से ज्यादा किसानों को फसल बीमा योजनाओं की ओर आकर्षित करने के लिए इन योजनाओं के लिए पर्याप्त पूंजी आवंटन करने की जरुरत है। संसद की इस समिति के अध्यक्ष वरिष्ठ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी हैं, जो किसानों के लिए काम करती है।

समिति ने जैविक खेती करने वाले किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कृषि बीमा योजना के पुनर्गठन की सिफारिश की है। इस योजना में बहु-फसल प्रणाली को भी शामिल किए जाने की अनुशंसा की गई है।

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एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कर रहे हैं, दूसरी तरफ संसद की समिति सरकार की योजना में पारदर्शिता की कमी बता रही है! साफ़ है कि फसल बीमा योजना में कहीं न कहीं बड़ा झोल है।

समिति ने आगे कहा है कि, “अगर किसानों को खुद को स्थिरता प्रदान करने का मौका दिया जाता है तो ही कृषि एक टिकाऊ पेशे के रूप में बना रहेगा। इसके लिए जरुरी है कि किसानों को बेहतर बीज मिले।

उन्हें सर्वश्रेष्ठ कृषि तकनीक की जानकारी हो और सरकार की ओर से खतरों को कवर करने के लिए समर्थन मिले। यानि किसानों को नुकसान होने पर सरकार उसकी भरपाई करे।

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इससे ये भी साफ़ है कि, किसानों को खेती करने में तमाम परेशानियाँ झेलनी पड़ रही हैं। मसलन उनमें अस्थिरता है, समय पर अच्छी बीज और खाद नहीं मिल रही है, सरकार किसानों तक तकनीक पहुँचाने में सफल नहीं हो पा रही। जबकि किसानों को फसल नष्ट होने पर कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है ये किसी से छिपा नहीं है।

बता दें कि मोदी सरकार ने 2016 में अपनी बहुप्रतीक्षित योजना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू की थी। लेकिन इस योजना में कई तरह की समस्याएं गिनाई गई हैं।

समिति के अनुसार एक समस्या ये भी है कि किसान जो लागत खेती करने में लगाते हैं उन्हें मंडियों में उसका वाजिब दाम से बहुत कम रुपए मिलते हैं, भुगतान में देरी की जाती है या रुपए नहीं मिलते। इससे किसानों में निराशा और आत्महत्या जैसी चीज़े घर कर जाती हैं।

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