भारतीय पत्रकारिता में लगातार गिरावट देखी जा रही है। पत्रकारों की स्वतंत्रता और सुरक्षा पर खतरा बढ़ता जा रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था का मानना है कि भारतीय पत्रकारिता हिंदुत्वादियों के दबाव और हमले से कमजोर हो रहा है।

दुनियाभर के देशों में पत्रकारिता की स्वतंत्रता की स्थिति पर सालाना रिपोर्ट जारी करने वाली संस्था ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ की माने तो भारत की पत्रकारिता हिंदुत्वादियों के संगठित हमले की चपेट में है।

‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ के ग्लोबल प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 में भारत 140वें स्थान पर आ गया है। पिछले साल यानी 2018 में भारत 138वें नंबर पर था। यानी भारत पिछले साल के मुक़ाबले दो पायदान नीचे गिरा है।

2016 से लगातार दो-दो पायदान नीचे गिर रहा है भारत

‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ के ग्लोबल प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2016 में भारत 133वें स्थान पर था। 2017 में दो पायदान गिरकर 136वें स्थान पर पहुंच गया। 2018 में दो पायदान और गिरकर 138वें स्थान पर पहुंच गया। और अब 2019 में 140वें स्थान पर आ पहुंचे हैं।

180 देशों की लिस्ट में भारत 140वें स्थान पर हैं यानी सबसे खराब से मात्र 40 पायदान ऊपर। प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार जैसे पड़ोसी मुल्क भारत से अच्छी स्थिति में हैं।

‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने भारत में प्रेस की आज़ादी और पत्रकारों पर बढ़े खतरें के लिए नरेंद्र मोदी एवं उनके हिंदूवादी समर्थकों को जिम्मेदार माना है।

आतंक की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर की तरफदारी करने वाली मीडिया शर्म करे, ये पत्रकारिता की मौत है

‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ का निष्कर्स है कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोद के समर्थक बहुत ही आक्रमक हैं। मोदी के ये हिंदूवादी समर्थक किसी भी तरह की आलोचना को बर्दाश्त नहीं करते।

जो पत्रकार मोदी सरकार से सवाल करते हैं उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर संगठित तरीक़े से नफ़रत का अभियान चलाया जाता है। पत्रकारों को जान से मारने की धमकी दी जाती है। अगर पत्रकार महिला हो तो हमला ज्यादा भयावह होता है।

मोदी के समर्थक हर उस विचार को मिटा देना चाहते हैं जो उन्हें राष्ट्र विरोधी लगता है। खुद सरकार भी आलोचना करने वाले पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करती है, कुछ मामलों में राजद्रोह का चार्ज भी लगा दिया जाता है।’

एक और बात जो ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ के रिपोर्ट में नहीं है। भारत में जहां एक तरफ पत्रकार हिंदूवादियों और सरकार का संगठित हमला झेल रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग हिंदूवादियों और सरकार के तानाशाही रवैये के समर्थन में अभियान चला रहा है।

ऐसे मीडिया संस्थान और पत्रकार सरकार के सरकार और हिंदूवादियों के हर कदम (हमले) को जायज ठहारा रहे हैं। पिछले चार साल में सैकड़ों ऐसी घटनाएं समाने आयीं, जब दक्षिणपंथी पत्रकारों के समुह ने संविधान के मुल्यों के विपरीत जाकर सरकार और हिंदूवादियों का समर्थन किया।

ग्लोबल रिपोर्ट में उजागर हुई मोदीराज की तानाशाही, प्रेस फ्रीडम में 140वें पायदान पर पहुंचा भारत

ताजा उदाहरण के रूप में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का मामला देखा जा सकता है। देश में आतंकवाद फैलाने की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को जब बीजेपी ने भोपाल से अपना उम्मीदवार बनाया तो तमाम दक्षिणपंथी पत्रकारों ने इसके समर्थन में मुहीम चलाई… और आज भी चला रहे हैं।

प्रज्ञा ठाकुर 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में आज भी अभियुक्त हैं। मालेगांव ब्लास्ट को जांच एजेंसियों ने आतंकवादी हमला बताया था। इस मामले में प्रज्ञा ठाकुर 9 साल जेल की सजा काट चुकी हैं और फिलहाल ‘हेल्थ ग्राउंड’ पर जमानत लेकर बाहर हैं। सवाल उठता है कि जेल में रहने लायक स्वास्थ्य नहीं है, लेकिन चुनाव लड़ने लायक है?

लेकिन कोई भी दक्षिणपंथी पत्रकार इस सवाल को नहीं उठा रहा है। उल्ट प्रज्ञा ठाकुर के चुनावी मैदान में उतरने को धर्मयुद्ध बता रहा है। जबकि चुनाव आयोग का साफ निर्देश है कि धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगना है।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित समेत सात अभियुक्तों पर अब भी आतंकवाद के ख़िलाफ़ बनाए गए क़ानून यूएपीए की धारा 16 और 18, आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक साज़िश), 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश) और 326 (इरादतन किसी को नुकसान पहुंचाना) के तहत मामला चल रहा है।

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