राफेल विमान सौदा मोदी सरकार के लिए गले की फांस बन गया है। सुप्रीम कोर्ट में मामला चले जाने से मोदी सरकार राफेल को उस तरह से डिफेंड नहीं कर पा रही, जिस तरीके से वो करना चाह रही है।

इसीलिए राफेल डील में शामिल लोगों से मोदी सरकार को बचाने के लिए बयान दिलवाया जा रहा है। हाल ही में समाचार एजेंसी एएनआई को दिए इन्टरव्यू में डसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने मोदी सरकार को इस मामले में अपनी ओर से क्लीनचिट देते हुए कहा है कि डील में कुछ भी गड़बड़ नहीं है!

जबकि, सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार को राफेल पर क्लीनचिट देने में कोई जल्दबाजी में नहीं है। एरिक ट्रैपियर ने इन्टरव्यू में कहा कि ‘वो झूठ नहीं बोल रहे हैं।’ जब एरिक सच बोल रहे हैं तो, झूठ नहीं बोल रहे हैं की बात करके वो अपने आपको डिफेंड क्यों कर रहे हैं?

वहीं राफेल डील में मुख्य आरोपी अनिल अंबानी भी अपने आपको साफ सुथरा बताते हुए सफाई दे चुके हैं। राफेल डील में शामिल सभी लोगों के बयान को अगर एक-एक कर देखेंगे तो इनमें विरोधाभास देखने को मिलेगा। सभी के बयान एक दूसरे से भिन्न मिलेंगे। लेकिन अंत सभी का एक है कि राफेल में कोई घोटाला हुआ ही नहीं हुआ।

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फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद पहले ही कह चुके हैं कि “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 70 साल पुरानी सरकारी कंपनी HAL (हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड) का नाम हटाकर 14 दिन पूर्व में बनी रिलायंस डिफेंस का नाम आगे किया था।” फ्रां

ओलांद का बयान आने के बाद ही अनिल अंबानी ने इस डील में घोटाले को लेकर अपनी सफाई दी। लेकिन इस बीच विपक्ष का हमला जारी रहा, जिसकी वजह से मामला हाथ से निकलता देख मोदी सरकार ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को फ्रांस के दौरे पर भेजा।

रक्षा मंत्री के फ्रांस दौरे के बाद ही डसौल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने मोदी सरकार को इस मामले में अपनी ओर से क्लीनचिट दी है।

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समाजवादी पार्टी के नेता सुनील सिंह यादव ने मोदी सरकार को राफेल सौदे पर घेरते हुए सोशल मीडिया पर लिखा है कि,

“मोदी सरकार के राफेल घोटाले पर कभी अनिल अम्बानी सफाई देते हैं हैं तो कभी फ्रेंच कंपनी डसौल्ट। जबकि फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति ओलांद कह चुके हैं कि मोदी सरकार ने ही अनिल अम्बानी की दिवालिया कंपनी चुनी थी। मोदी जी जब सब सही है तो जनता को सच बताने से डर क्यों रहे हैं?”

दरअसल, राफेल डील पर कांग्रेस और विपक्ष कई दिनों से सवाल उठा रहें है। मोदी सरकार पर विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि, हर विमान को करीब 1670 करोड़ रुपये खरीद रही है जबकि यूपीए सरकार ने 126 राफेल विमानों की खरीद के लिए बातचीत कर रही थी उसने इसे 526 करोड़ में अंतिम रूप दिया था।

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