आज सुप्रीम कोर्ट में राफेल पर दलीलों का दौर 5 घंटे तक चला. सरकार और याचिकार्ताओं के साथ-साथ वायु सेना के अधिकारियों को भी अपना पक्ष रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कोर्ट में पेश होना पड़ा.

इसके बाद याचिकार्ताओं की कोर्ट की निगरानी में पूरे मामले की जांच की मांग पर फैसले को कोर्ट ने अपने पास ही सुरक्षित रख लिया. लेकिन आज सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने कोर्ट के आगे सरकार पर जो सवाल उठ़ाए उससे सरकार के पसीने छुट गए.

प्रशांत भूषण कोर्ट में सरकार के खिलाफ इस तरह खड़े हुए कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को उन्हें बताना पड़ा कि आपसे जितना पूछा जाए उतना ही बोलें. दरसल प्रशांत भूषण कोर्ट में केंद्र की मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि पहले इस डील में 108 विमान भारत में बनाने की बात की जा रही थी.

25 मार्च 2015 को दसॉल्ट और हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड करार हुआ और दोनों ने कहा कि 95 फीसदी बात हो गई है. इस करार के 15 दिन बाद मोदी जी ने फ्रांस का दौरा किया जिसके बाद नई डील सामने आई.

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इसमें 36 विमान पक्के हुए और मेक इन इंडिया को किनारे कर दिया गया. इस डील के बारे में रक्षा मंत्रालय को भी जानकारी नहीं थी. एक झटके में विमान 108 से 36 हो गए साथ ही ऑफसेट पार्टनर हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड की जगह रिलांयस को बना दिया गया.

उन्होंने कहा कि सरकार कह रही है कि उन्हें ऑफसेट पार्टनर का पता नहीं है, लेकिन प्रोसेस में साफ है कि बिना रक्षामंत्री की अनुमति के ऑफसेट तय नहीं हो सकता है. ऑफसेट बदलने के लिए सरकार ने नियमों को बदला और तुरंत उसे लागू किया.

भूषण ने कहा कि सरकार पहले ही दो बार देश की सुरक्षा को ताक पर रख दिया है, क्योंकि वह दो बार संसद में राफेल के दाम बता चुकी है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को कहा कि कोर्ट में जितना जरूरी हो, उतना ही बोलें.

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प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि दसॉल्ट ने रिलायंस ग्रुप के 240 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे. प्रशांत भूषण ने कहा कि इस डील के लिए रिलायंस को ही क्यों चुना गया? उसके पास तो जमीन भी नहीं थी, रिलायंस फॉर्मूला का ही पार्ट थी.

17 दिन के अंदर ही रिलायंस को जमीन, डिफेंस मैन्यूफेक्चरिंग का लाइसेंस दिया गया. उन्होंने कहा कि दो सरकारों के बीच एग्रीमेंट इमरजेंसी के हालात में होता है, लेकिन अभी कोई ऐसी स्थिति नहीं है.

प्रशांत भूषण के इन आरोपों को देखते हुए यही लगता है कि इन सवालों का जवाब देना सरकार के लिए बिलकुल भी आसान नहीं होगा. उम्मीद यह भी है कि कोर्ट का फैसला याचिकाकर्ताओं के पक्ष में जा सकता है. फिलहाल अभी कोर्ट ने इसे सुरक्षित ही रखा है.

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