मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में उत्तर प्रदेश में हो रहे ताबड़तोड़ एनकाउंटर्स की जांच किए जाने को लेकर दायर की गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने मंज़ूर कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में योगी सरकार को नोटिस भी जारी किया है।

दरअसल, सामाजिक संस्था पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) ने एनकाउंटर्स की जांच अदालत की निगरानी में CBI या विशेष जांच दल से कराने के लिये एक जनहित याचिका दायर की थी। जिसे कोर्ट ने मंज़ूर कर लिया है। इस मामले की सुनवाई  12 फरवरी को चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ करेगी।

याचिका में संगठन ने आरोप लगाया गया है कि योगीराज में हुए एनकाउंटर फर्जी हैं। याचिका में कहा गया है कि 2017 में करीब 1100 मुठभेड़ें हुई हैं जिनमें 49 व्यक्ति मारे गए और 370 अन्य जख़्मी हुए।

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इस संगठन ने अपनी याचिका में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक (कानून व्यवस्था) आनंद कुमार के हवाले से प्रकाशित ख़बरों का जिक्र किया है, जिनमें राज्य में अपराधियों को मारने के लिए मुठभेड़ों को न्यायोचित ठहराया है।

इसपर समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रवक्ता सुनील सिंह यादव ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सूबे की योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि योगी सरकार यूपी में एनकाउंटर के नाम पर पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है।

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सपा नेता ने ट्वीट कर लिखा, “यूपी में एनकाउंटर के नाम पर योगी सरकार पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों का अघोषित कत्लगाह चला रही है। बड़े अपराधी सरकार की गोद मे बैठे हैं और निर्दोष निशाने पर हैं। SC ने इस मामले को संज्ञान में लिया है। उम्मीद है कि ‘ठोंको संस्कृति’ की जिम्मेदारी तय होगी”।

बता दें कि सूबे में जारी ताबड़तोड़ एनकाउंटर्स पर सवाल उठते रहे हैं। विपक्षियों का आरोप है कि अपराध कम करने के नाम पर योगी सरकार साज़िश के तहत पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है। हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन आरोपों को ग़लत बताते हैं।

लेकिन दूसरी तरफ़ वो अपराधियों को मूल अधिकार न दिए जाने की वकालत करते हैं और उन्हें सीधे ठोक देने की बात करते हैं।

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